सोमवार, 29 दिसंबर 2008

राजनैतिक आतंकवाद

देश अभी भी मुंबई हमलो से उबरा नहीं है. देश की सीमाओं पर पाकिस्तानी सैन्य जमावडा होता दिख रहा है.. लगभग हर दिन पाकिस्तान की तरफ़ से अपने सैन्य बाहुबल का घमंड प्रदर्शन होता दिखाई पड़ रहा है......यह सब दिखाना पाकिस्तान की अपनी राजनैतिक मज़बूरी तथा अमेरिका को युद्धोन्माद दिखा कर वातावरण को ठंडा करवाने की अप्रत्यक्ष नीति हो सकती है.

लेकिन अपने देश में जो भी हो रहा है.....वह अत्यन्त घृणित एवं निंदनीय राजनैतिक कृत्य हैं. जिससे यह सिद्ध होता है कि हमारे राजनैतिक दल, राष्ट्र की कैसी भी स्तिथि में अपना गंदा कार्य करने तथा कराने से बाज़ नहीं आते क्यों कि इनके लिए देश, जनता, राष्ट्र के प्रति किसी भी कर्तव्य से ऊपर उनका राजनैतिक हित है.

मुंबई हमले के एक महीने बाद कोंग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कल एक शिगूफा छोड़ा कि मुंबई हमले में शामिल आतंकवादियों ने अपने कुछ साथियों को छोड़े जाने की शर्त रखी थी जिसे हमारी केन्द्र सरकार ने ठुकरा दिया............पिछले एक महीने से सभी भारतीय एवं विदेशी समाचार माध्यमों ने किसी भी अवसर पर इस बात का कोई भी ज़िक्र नहीं किया जबकि वे एक एक पल तथा हमले के समय की सुरक्षा बलों की उन रणनीतिक कार्रवाइयों को भी दिखा रहे थे जिसे नहीं दिखाना चाहिए था, पर किसी ने कभी भी, किसी भी मौके पर इस बात का ज़िक्र नहीं किया......पर न जाने दिग्विजय सिंह को कहाँ से यह जानकारी मिली कि आतंकवादियों ने अपने कुछ साथियों कि रिहाई की बात की थी जिसे बड़ी ही बहादुरी से संप्रग सरकार ने ठुकरा दिया........और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की तरह कंधार काण्ड के बदले आतंकवादियों को रिहा नहीं किया............क्या कहना चाहते हैं दिग्विजय सिंह? इस संवेदनशील एवं दुःख की घड़ी में ओछी राजनीति का इतना नग्न प्रदर्शन सिर्फ़ कांग्रेस ही कर सकती है...........क्यों कि अंतुले के साम्प्रदायिकता की ओछी बयान बाज़ी को अभी बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं कि कांग्रेस की तरफ़ से एक और घृणित उदाहरण पेश कर दिया गया.........ऐसे हैं हमारे तथाकथित सेकुलर और देशभक्त राजनैतिक दल एवं उनके नेता........

कवि हरिओम पंवार की एक कविता आज से लगभग २०-२५ वर्ष पहले सुनी थी, वह आज भी उतनी ही समीचीन है जितने उस समय थी " किस मौसम को गाली दें और किस मौसम को प्यार करें, राजनीति का सारा वातावरण घिनौना है, भोली जनता इनके लिए एक खिलौना है......"

उधर उत्तर प्रदेश में अपनी मुख्यमंत्री की सालगिरह मनाने के लिए उनके विधायक अपने ही अधिकारियों की तालिबानी रूप से हत्या कर देते हैं.........ये कैसा लोकतंत्र है.........? देश में यह हो क्या रहा है?

कोई सोची समझी राजनीति के तहत मुंबई हमलों में शहीद पुलिस अधिकारियों की हत्या पर तोलमोल के शब्दों द्वारा विवादित बयान दे रहा है.......जबकि सारा मामला देश के सामने है .....फ़िर भी जानबूझ कर किसी एक राजनैतिक दल को मुंबई एवं देश में आई इस मुसीबत एवं दुःख की घड़ी में भी राजनैतिक लाभ के लिए अपराधी ठहराने की कोशिश की जा रही है एवं अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के हाथ मजबूत करने की साजिश की जा रही है और हमारी प्रतिष्ठित, संस्कारवान कांग्रेस अपने ही नेता को कुछ भी कह सकने में असमर्थ महसूस कर रही है.


बेशर्मी एवं नेतृत्व की नपुंसकता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या देखने को मिलेगा?

क्या आप अभी भी इन सड़े गले, बदबूदार राजनैतिक दलों एवं उनके कर्णधारों से अपने देश की भलाई की अपेक्षा कर सकते हैं..........


आज कांग्रेस के युवराज भी चुप हैं जिन्हें कलावती के दुःख की बहुत पीडा होती है (शायद वह भी प्रचार पाने के लिए) पर आज युवराज चुप हैं क्यों कि उन्हें भी इन मामलों पर कुछ भी बोल कर तथाकथित अल्पसंख्यक (पाकिस्तान की आबादी ज्यादा यहाँ पर मुस्लिमों की संख्या है) वोटों से हाथ नहीं धोने हैं .......क्यों कि आज की राजनीति की यही नीति है..........महारानी भी चुप हैं क्यों कि उनकी भी यही मज़बूरी है...........

जितना हमें बाहरी आतंकवादियों से खतरा नहीं है उससे ज्यादा हमारे इन राजनैतिक दलों द्बारा इस तरह के चलाये जा रहे राजनैतिक आतंकवाद से खतरा ai.........


गौर से देखिये, देश आज घरेलू राजनैतिक आतंकवाद से जूझता दिखाई पड़ रहा है....जामिया नगर की मुठभेंड में मारे गए आतंकवादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता लेकर पहुंचे अमर सिंह को आज मुंबई पुलिस के तुकाराम के परिवार की चिंता नहीं क्यों कि वह एक बहुसंख्यक समुदाय से आता है और उसकी सहायता किसी भी प्रकार का प्रचार नहीं देगी तथा यह सहायता वोटों में परिवर्तित भी नहीं होगी.......


प्रांतीयता की विद्वेषपूर्ण राजनीति करने वाले भी आज अपनी झोली नहीं खोल रहे हैं क्यों कि इससे उनका मतलब सिद्ध नहीं होता..... प्रांतीयता की घृणित राजनीति का मुद्दा नही मिलता.

इस राजनैतिक आतंकवाद एवं सत्तामद में डूबे जनता के इन सेवकों से पूछना होगा...खासतौर से उस राजनीतिक दल से जिसने स्वाधीनता प्राप्ति के ४० साल तक लगातार एवं बाद के वर्षों में भी काफी समय तक राज किया तथा सता पर अभी भी दूसरे दलों की वैसाखी से कायम है,............


कि देश की स्वतंत्रता के ६० वर्षों बाद भी:........
०१-
आज देश के अधिकांश गावों में पीने का साफ़ पानी उपलब्ध क्यों नहीं ai.

०२- आज देश के अधिकांश गावों तथा नगरों में २४ घंटे बिजली की आपूर्ति क्यों नहीं है?

०३- देश के अधिकांश गावों में आज भी स्तरीय शिक्षा के लिए विद्यालय एवं महाविद्यालय क्यों नहीं हैं?

०४- देश के अधिकांश गावों में आज भी पक्की सड़कें क्यों नहीं हैं?

०५- देश की राजनीति का अपराधीकरण क्यों हुआ है?

०६- देश की जनता को एकजुट रखने की जगह धर्म, जाति एवं भाषा के आधार पर बांटा किसने और क्यों है?

०७- डाक्टर अम्बेडकर के दलितों के आरक्षण को जो उन्होंने केवल सिर्फ़ दस साल के लिए ही लागू किया था, उसे इस अवधि से आगे बढा कर पिछले ६० वर्षों से क्यों जारी रखा गया है? उन निर्धारित वर्षों में दलितों के उत्थान के लिए पर्याप्त योजनायें एवं सुविधाएँ क्यों नहीं दी गईं?

०८- क्यों किसी एक समुदाय का समुचित विकास न करवा कर, उस समुदाय का केवल वोटों की खातिर तुष्टिकरण किया गया?

०९- क्यों नही इस देश में एक सी शिक्षा प्रणाली लागू की गई?

१०- क्यों इस देश के विद्यार्थियों के बीच अमीरी एवं गरीबी, ऊँच एवं नीच, अगड़ा एवं पिछड़ा का भावः पैदा किया गया?

११- क्यों नही इस देश के सभी प्रदेशों में एक सा ही पाठ्यक्रम लागू किया गया ताकि किसी भी विद्यार्थी के मन में हीनता का भाव न आने पाये?

१२- क्यों आज गरीब नागरिक साठ साल बाद भी गरीब है?

१३- क्यों गरीबों, पिछडों और दलितों के मसीहा अरबपति, करोड़ों पति तथा अकूत सम्पत्ति के स्वामी हैं? जबकि इनका एक बहुत बडा भाग अभी भी गरीब तथा अशिक्षित है.

१४- क्यों एक गरीब या साधारण व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता?

१५- चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाने के लिए धन इन राजनीतिज्ञों के पास कहाँ से आता है?

ऐसे कितने ही अनगिनत सवाल हैं जिनका उत्तर इन राजनीतिज्ञों से ही लेना होगा क्यों कि यही इन सवालों के प्रति उत्तरदायी हैं .....

इस राजनैतिक आतंकवाद एवं अनाचार से हमें निबटना ही होगा..देश के नागरिकों को सोचना और तय करना होगा कि इनसे कैसे निबटा जाए......देश के युवाओं को यह सोचना एवं आगे बढ़ कर देश की राजनीति की मुख्यधारा में प्रवेश करना होगा......देश को घरेलू आतताईयों से मुक्त कराना ही होगा.........

पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों से तो निबटना ही है परन्तु सबसे पहले हमें अपने घर की व्यवस्था को सुधारना होगा, उसे आंतरिक अनाचार विशेष कर राजनैतिक अनाचार से मुक्त कराना होगा या उन पर एक कड़ी नज़र तथा लगाम लगानी होगी तभी इस देश का भला हो सकता है ............

मधुकर पाण्डेय

मुंबई

2 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

जो स्वयं अपने शत्रु हों उन्हें किसी बाहरी शत्रु की क्या आवश्यकता ?
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

is subject par pahle kaafi likha hai puraani post jaroor dekhen