सोमवार, 29 दिसंबर 2008

राजनैतिक आतंकवाद

देश अभी भी मुंबई हमलो से उबरा नहीं है. देश की सीमाओं पर पाकिस्तानी सैन्य जमावडा होता दिख रहा है.. लगभग हर दिन पाकिस्तान की तरफ़ से अपने सैन्य बाहुबल का घमंड प्रदर्शन होता दिखाई पड़ रहा है......यह सब दिखाना पाकिस्तान की अपनी राजनैतिक मज़बूरी तथा अमेरिका को युद्धोन्माद दिखा कर वातावरण को ठंडा करवाने की अप्रत्यक्ष नीति हो सकती है.

लेकिन अपने देश में जो भी हो रहा है.....वह अत्यन्त घृणित एवं निंदनीय राजनैतिक कृत्य हैं. जिससे यह सिद्ध होता है कि हमारे राजनैतिक दल, राष्ट्र की कैसी भी स्तिथि में अपना गंदा कार्य करने तथा कराने से बाज़ नहीं आते क्यों कि इनके लिए देश, जनता, राष्ट्र के प्रति किसी भी कर्तव्य से ऊपर उनका राजनैतिक हित है.

मुंबई हमले के एक महीने बाद कोंग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कल एक शिगूफा छोड़ा कि मुंबई हमले में शामिल आतंकवादियों ने अपने कुछ साथियों को छोड़े जाने की शर्त रखी थी जिसे हमारी केन्द्र सरकार ने ठुकरा दिया............पिछले एक महीने से सभी भारतीय एवं विदेशी समाचार माध्यमों ने किसी भी अवसर पर इस बात का कोई भी ज़िक्र नहीं किया जबकि वे एक एक पल तथा हमले के समय की सुरक्षा बलों की उन रणनीतिक कार्रवाइयों को भी दिखा रहे थे जिसे नहीं दिखाना चाहिए था, पर किसी ने कभी भी, किसी भी मौके पर इस बात का ज़िक्र नहीं किया......पर न जाने दिग्विजय सिंह को कहाँ से यह जानकारी मिली कि आतंकवादियों ने अपने कुछ साथियों कि रिहाई की बात की थी जिसे बड़ी ही बहादुरी से संप्रग सरकार ने ठुकरा दिया........और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की तरह कंधार काण्ड के बदले आतंकवादियों को रिहा नहीं किया............क्या कहना चाहते हैं दिग्विजय सिंह? इस संवेदनशील एवं दुःख की घड़ी में ओछी राजनीति का इतना नग्न प्रदर्शन सिर्फ़ कांग्रेस ही कर सकती है...........क्यों कि अंतुले के साम्प्रदायिकता की ओछी बयान बाज़ी को अभी बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं कि कांग्रेस की तरफ़ से एक और घृणित उदाहरण पेश कर दिया गया.........ऐसे हैं हमारे तथाकथित सेकुलर और देशभक्त राजनैतिक दल एवं उनके नेता........

कवि हरिओम पंवार की एक कविता आज से लगभग २०-२५ वर्ष पहले सुनी थी, वह आज भी उतनी ही समीचीन है जितने उस समय थी " किस मौसम को गाली दें और किस मौसम को प्यार करें, राजनीति का सारा वातावरण घिनौना है, भोली जनता इनके लिए एक खिलौना है......"

उधर उत्तर प्रदेश में अपनी मुख्यमंत्री की सालगिरह मनाने के लिए उनके विधायक अपने ही अधिकारियों की तालिबानी रूप से हत्या कर देते हैं.........ये कैसा लोकतंत्र है.........? देश में यह हो क्या रहा है?

कोई सोची समझी राजनीति के तहत मुंबई हमलों में शहीद पुलिस अधिकारियों की हत्या पर तोलमोल के शब्दों द्वारा विवादित बयान दे रहा है.......जबकि सारा मामला देश के सामने है .....फ़िर भी जानबूझ कर किसी एक राजनैतिक दल को मुंबई एवं देश में आई इस मुसीबत एवं दुःख की घड़ी में भी राजनैतिक लाभ के लिए अपराधी ठहराने की कोशिश की जा रही है एवं अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के हाथ मजबूत करने की साजिश की जा रही है और हमारी प्रतिष्ठित, संस्कारवान कांग्रेस अपने ही नेता को कुछ भी कह सकने में असमर्थ महसूस कर रही है.


बेशर्मी एवं नेतृत्व की नपुंसकता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या देखने को मिलेगा?

क्या आप अभी भी इन सड़े गले, बदबूदार राजनैतिक दलों एवं उनके कर्णधारों से अपने देश की भलाई की अपेक्षा कर सकते हैं..........


आज कांग्रेस के युवराज भी चुप हैं जिन्हें कलावती के दुःख की बहुत पीडा होती है (शायद वह भी प्रचार पाने के लिए) पर आज युवराज चुप हैं क्यों कि उन्हें भी इन मामलों पर कुछ भी बोल कर तथाकथित अल्पसंख्यक (पाकिस्तान की आबादी ज्यादा यहाँ पर मुस्लिमों की संख्या है) वोटों से हाथ नहीं धोने हैं .......क्यों कि आज की राजनीति की यही नीति है..........महारानी भी चुप हैं क्यों कि उनकी भी यही मज़बूरी है...........

जितना हमें बाहरी आतंकवादियों से खतरा नहीं है उससे ज्यादा हमारे इन राजनैतिक दलों द्बारा इस तरह के चलाये जा रहे राजनैतिक आतंकवाद से खतरा ai.........


गौर से देखिये, देश आज घरेलू राजनैतिक आतंकवाद से जूझता दिखाई पड़ रहा है....जामिया नगर की मुठभेंड में मारे गए आतंकवादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता लेकर पहुंचे अमर सिंह को आज मुंबई पुलिस के तुकाराम के परिवार की चिंता नहीं क्यों कि वह एक बहुसंख्यक समुदाय से आता है और उसकी सहायता किसी भी प्रकार का प्रचार नहीं देगी तथा यह सहायता वोटों में परिवर्तित भी नहीं होगी.......


प्रांतीयता की विद्वेषपूर्ण राजनीति करने वाले भी आज अपनी झोली नहीं खोल रहे हैं क्यों कि इससे उनका मतलब सिद्ध नहीं होता..... प्रांतीयता की घृणित राजनीति का मुद्दा नही मिलता.

इस राजनैतिक आतंकवाद एवं सत्तामद में डूबे जनता के इन सेवकों से पूछना होगा...खासतौर से उस राजनीतिक दल से जिसने स्वाधीनता प्राप्ति के ४० साल तक लगातार एवं बाद के वर्षों में भी काफी समय तक राज किया तथा सता पर अभी भी दूसरे दलों की वैसाखी से कायम है,............


कि देश की स्वतंत्रता के ६० वर्षों बाद भी:........
०१-
आज देश के अधिकांश गावों में पीने का साफ़ पानी उपलब्ध क्यों नहीं ai.

०२- आज देश के अधिकांश गावों तथा नगरों में २४ घंटे बिजली की आपूर्ति क्यों नहीं है?

०३- देश के अधिकांश गावों में आज भी स्तरीय शिक्षा के लिए विद्यालय एवं महाविद्यालय क्यों नहीं हैं?

०४- देश के अधिकांश गावों में आज भी पक्की सड़कें क्यों नहीं हैं?

०५- देश की राजनीति का अपराधीकरण क्यों हुआ है?

०६- देश की जनता को एकजुट रखने की जगह धर्म, जाति एवं भाषा के आधार पर बांटा किसने और क्यों है?

०७- डाक्टर अम्बेडकर के दलितों के आरक्षण को जो उन्होंने केवल सिर्फ़ दस साल के लिए ही लागू किया था, उसे इस अवधि से आगे बढा कर पिछले ६० वर्षों से क्यों जारी रखा गया है? उन निर्धारित वर्षों में दलितों के उत्थान के लिए पर्याप्त योजनायें एवं सुविधाएँ क्यों नहीं दी गईं?

०८- क्यों किसी एक समुदाय का समुचित विकास न करवा कर, उस समुदाय का केवल वोटों की खातिर तुष्टिकरण किया गया?

०९- क्यों नही इस देश में एक सी शिक्षा प्रणाली लागू की गई?

१०- क्यों इस देश के विद्यार्थियों के बीच अमीरी एवं गरीबी, ऊँच एवं नीच, अगड़ा एवं पिछड़ा का भावः पैदा किया गया?

११- क्यों नही इस देश के सभी प्रदेशों में एक सा ही पाठ्यक्रम लागू किया गया ताकि किसी भी विद्यार्थी के मन में हीनता का भाव न आने पाये?

१२- क्यों आज गरीब नागरिक साठ साल बाद भी गरीब है?

१३- क्यों गरीबों, पिछडों और दलितों के मसीहा अरबपति, करोड़ों पति तथा अकूत सम्पत्ति के स्वामी हैं? जबकि इनका एक बहुत बडा भाग अभी भी गरीब तथा अशिक्षित है.

१४- क्यों एक गरीब या साधारण व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता?

१५- चुनावों में पानी की तरह पैसा बहाने के लिए धन इन राजनीतिज्ञों के पास कहाँ से आता है?

ऐसे कितने ही अनगिनत सवाल हैं जिनका उत्तर इन राजनीतिज्ञों से ही लेना होगा क्यों कि यही इन सवालों के प्रति उत्तरदायी हैं .....

इस राजनैतिक आतंकवाद एवं अनाचार से हमें निबटना ही होगा..देश के नागरिकों को सोचना और तय करना होगा कि इनसे कैसे निबटा जाए......देश के युवाओं को यह सोचना एवं आगे बढ़ कर देश की राजनीति की मुख्यधारा में प्रवेश करना होगा......देश को घरेलू आतताईयों से मुक्त कराना ही होगा.........

पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों से तो निबटना ही है परन्तु सबसे पहले हमें अपने घर की व्यवस्था को सुधारना होगा, उसे आंतरिक अनाचार विशेष कर राजनैतिक अनाचार से मुक्त कराना होगा या उन पर एक कड़ी नज़र तथा लगाम लगानी होगी तभी इस देश का भला हो सकता है ............

मधुकर पाण्डेय

मुंबई

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

पाकिस्तान और हम .......

कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनके बारे में कुछ भी रचनात्मक सोचना महज अपने आप को धोखे में रखना होता है उनका जन्म, उनका विकास और उनकी प्रवृत्ति सदैव से ही विध्वंशात्मक एवं नकारात्मक होती है. हमारे वेद-पुराणों में सहृदयता,सदभाव, सहधर्मिता एवं वसुधैव कुटुम्बकं की अवधारणा है परन्तु उन्हीं वेद-पुराणों में ही अधर्म एवं अत्याचार के विनाश की भी बात कही गई है. स्वयं ईश्वर ने मानव रूप धर इस पृथ्वी पर इस अत्याचार एवं अधर्म का विनाश किया है जिस अत्याचार एवं अधर्म ने मानवता के अस्तित्व को ही समाप्त करने की ठान ली थी.

आज भी लगभग वैसी ही स्तिथियाँ मानवता के सामने है. विशेषकर भारत के सामने आज हमारा ही पडोसी पिछले ६० वर्षों से हमारे देश का शत्रु बना बैठा है. हमारी प्रगति, हमारे लोकतंत्र, हमारी अनेकता में एकता से ईर्ष्यालु हमारा यह पडोसी, अपने जन्म से ही हमें परेशान करने के अलावा कुछ और नहीं सोचता एवं करता है. वहां कोई भी सरकार आए चाहे वह लोकतान्त्रिक सरकार हो या तानाशाह की सरकार, सबका एक ही एजेंडा रहता है कि भारत को कैसे परेशान किया जाए चाहे वह कश्मीर का मामला हो या फ़िर सियाचिन का या फ़िर कुछ और........उन्हें भारत में अस्थिरता फैलाना अपना राष्ट्रीय धर्म लगता है. सभी एक ही भाषा बोलते नज़र आते हैं.

भारत की परमाणु क्षमता से उसको भी परमाणु सम्पन्न देश बनने की चाह जाग उठी, भले ही वह परमाणु तकनीक चोरी छुपे ही क्यों न हासिल की गई हो. आज एक ऐसे नासमझ एवं अदूरदर्शी देश के हाथ में परमाणु तकनीक आ गई है जिससे इस क्षेत्र के सभी राष्ट्रों को खतरा है. क्यों कि पाकिस्तान की सेना तथा सेना के अधीन आई.एस.आई., पाकिस्तान के कट्टरपंथी गुटों के साथ भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करते रहते हैं, यह तथ्य समय समय पर भारत सरकार ने उठाया है. इसलिए परमाणु सम्पन्न होने के बाद इन कट्टरपंथियों से और भी ज्यादा खतरा है.

हमने अपने राष्ट्रीय स्वभाव एवं संस्कृति के अनुरूप पाकिस्तान से कई बार मित्रता का प्रयास किया परन्तु सदैव ही हमें धोखा खाना पड़ा. पाकिस्तान ने सदैव ही हमारे पीठ पर छुरा भोंकने का ही कार्य किया है.

परन्तु अब समय आ गया है कि हम यह पूरी तरह से निश्चित कर लें कि हमें अपने इस नापाक पाकिस्तान से किस तरह का सम्बन्ध रखना है. आज इसी पाकिस्तान के कारण ही हमारी जनता कहीं पर भी सुरक्षित नहीं अनुभव करती है. चाहे वह देश का पूर्वोत्तर भाग हो, दक्षिण का भाग हो या कि पश्चिमी एवं मध्य भारत. उत्तरी भारत तो लगातार इस देश से आए आतंकियों का निशाना रहा है. कुल निष्कर्ष यह है कि यह देश अपनी नापाक हरकतों और इरादों को हर हाल में भारत की धरती पर अंजाम देता रहेगा.

पिछले ६० वर्ष का समय पर्याप्त होता है कि हम यह निर्धारित कर सकें किसी भी देश के साथ किस तरह का सम्बन्ध रखा जाए. अब घडी कड़े निर्णय लेने की है. इसके लिए राष्ट्र की जनता, राष्ट्र के राजनीतिज्ञों को एक बहुत ही सशक्त आत्म शक्ति की आवश्यकता होगी. बिना राजनैतिक दृढ़ इच्छाशक्ति के यह सम्भव नहीं है. पर क्या इतनी दृढ़ इच्छाशक्ति आज के राजनैतिक नेतृत्वों में है.? यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है क्यों कि कहीं ऐसा तो नहीं कि तुष्टिकरण एवं तथाकथित वोटों का लालच देश हित में आवश्यक कडे कदम उठाने से रोक रहा हो.

यह यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि हमारी संसद ने एक सुर से कुछ वर्ष पहले "पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर" वाले हिस्से को उसके चंगुल से मुक्त करने का संकल्प लिया था. चुनावी आश्वासनों की तरह संविधान के इस पावन मन्दिर में लिए गए उस संकल्प को इन सांसदों को नहीं भूलना चाहिए. यदि इन संकल्पों को पूरा करने की शक्ति नहीं है तो ऐसे भ्रामक संकल्पों को नहीं लेना चाहिए.. हम पिछले तीन युद्धों में अपने वीर सैनिकों का बलिदान देकर पाकिस्तान की जमीन पर काफी हद तक कब्जा कर लेते हैं और फ़िर सहृदयता का परिचय देते हुए उसे उसकी भूमि वापस भी कर देते हैं पर पाकिस्तान पिछले ६० वर्षों से हमारे कश्मीर के हिस्से , जो कि अब "पाक अधिकृत कश्मीर" कहा जाता है., को कब्जा किए हुए बैठा है, वह उस पर बात तक नहीं करता........

हमारे देश के इतिहास में पूर्व में बड़ी कूटनीतिक गलतियां होती रही हैं जिसका खामियाजा देश की कई पीढियों को भुगतना पड़ रहा है.....पहली गलती हमारे प्रथम प्रधानमन्त्री द्वारा हुई जब वह पाकिस्तान के कबायली आक्रमण की घटना को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ चले गए.....उसी समय यदि तात्कालिक निर्णय लेकर सेना को समय रहते कश्मीर भेज दिया गया होता तो आज दृश्य ही कुछ और होता दूसरी भयानक कूटनीतिक गलती तब हुई जब पाकिस्तान के ९०,००० सैनिक हमारे यहाँ युद्ध बंदी थे.........उस समय पाकिस्तान दबाव में था.....उसी समय "पाक अधिकृत कश्मीर" की वापसी के लिए बात की जाती तो आज दृश्य कुछ और ही होता........ अब बस यह देखना है कि तीसरी कोई बड़ी कूटनीतिक गलती हमारे राजनीतिज्ञों से न हो.........

अमेरिका, ब्रिटेन ये सभी पश्चिमी देश अपने निजी स्वार्थों के कारण तथाकथित आतंकवाद के विरोध में एकजुटता का आव्हाहन करते हैं परन्तु पाकिस्तान जाओ की सारे विश्व में आतंकवाद की पाठशाला है, प्रशिक्षण केन्द्र है.....ये सभी उसके विरुद्ध कड़ी कारवाई का कोई भी कदम नहीं उठाते हैं बल्कि आश्चर्य है कि अमेरिका जैसा देश पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने के लिए अरबों डालर की सहायता देता है, यह स्पष्ट रूप से जानते हुए भी कि पाकिस्तान ही जो कि आतंकवाद का प्रमुख शोध केन्द्र है प्रमुख रणनीतिक केन्द्र है.......लगभग सभी प्रकार की गैरकानूनी गतिविधियाँ इस देश से समस्त विश्व में फैलाई जाती हैं. अमेरिका कभी भी हमारा सच्चा मित्र नहीं रहा है. यह वाही अमेरिका है जिसने १९७१ के भारत पाक युद्ध के समय हम पर दबाव बनाने के लिए अपना सातवाँ युद्धक बेडा अरबा सागर में भेजने की धमकी दी थी. यह ठीक है की समय के साथ रिश्ते भी बदलते हैं लेकिन इन बदलावों में हमें सदैव अपने और पराये का ख्याल रखना होगा और या तभी सम्भव है जब हम किसी तथाकथित मित्र का इतिहास ठीक तरह से समझते रहें. आज भी अमेरिका पाकिस्तान को पुचकारता रहता है.......क्या उसकी खुफिया एजेंसियों को यह नहीं मालूम कि सम्पूर्ण विश्व में आतंकवाद का निर्यातक देश कौन है?

पाकिस्तान की स्तिथि एक चरित्रहीन स्त्री की तरह है जो अपने एक प्रेमी को यह कह कर डराती है कि अगर उसने मेरा ठीक से ख्याल न रखा तो वह अपने दूसरे प्रेमी के पास चली जायेगी और इसी तरह वह दूसरे प्रेमी को भी समय समय पर डराती रहती है. पाकिस्तान के ये दो स्पष्ट प्रेमी हैं अमेरिका और चीन.........

आज भारत को एक दूरदर्शी एवं कडे निर्णय को लेने की आवश्यकता है जिसमें समस्त भारतीय नागरिकों की भी सहमति आवश्यक है क्यों कि किसी भी देश की नीतियाँ उस देश के नागरिकों को ही प्रभावित करती हैं, और नागरिकों से ही देश की पहचान एवं प्रगति बनती है........

मधुकर पाण्डेय

मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

आज भारत को अपनी आत्मा के समुद्र मंथन की बहुत ही आवश्यकता है.......

यह देश किसका है? किसका अधिकार इस देश पर है?.......निश्चित ही तुम्हारा.......तुम्हारा अर्थात तुम जो इस देश के नागरिक हो उसका.......इस देश का भला सोचना, इसको प्रगति, सुख एवं शान्ति के राह पर अग्रसर कराने का उत्तरदायित्व तुम्हारा है......... क्यों कि तुम ही अपने जन प्रतिनिधि चुनते हो.....इस लिए देश की इस दुर्दशा, जो कि इस देश में इन जनप्रतिनिधियों ने की है, उसके अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी तुम भी हो...... तुम अपने इस उत्तरदायित्व से बच नहीं सकते.....

तुम अब ये मत कहना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता मुहावरों से अब अपने को धोखा मत दो, क्यों कि ये तुम अपने को नहीं बल्कि आगे आने वाली पीढियों को धोखा दे रहे हो.

विचार बनाओ, विचार को सशक्त बनाओ, क्योंकि व्यक्ति मर सकता है, मारा जा सकता है लेकिन उसके द्वारा उत्पन्न किया गया, प्रसारित किया गया विचार कभी नहीं मरता.....वैचारिक क्रांति की सूत्रपात करो......

१५ अगस्त १९४७ को हम अंग्रेजों के चंगुल से आजाद अवश्य हो गए लेकिन आज ६० वर्ष के बाद भी हम शायद अभी भी ब्रिटिश मानसिकता से अलग नहीं हो पाये हैं. बांटो और राज करो की नीतियों को हमारे राजनीतिज्ञों ने विरासत में प्राप्त कर लिया है जो बदस्तूर अब तक जारी है. आरक्षण, अगडा-पिछडा, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, इन विषाक्त मायाजालों के प्रभाव से बाहर आना ही होगा अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करना होगा, इन सरकारी और राजनीतिज्ञों की भीख में दी हुई वैशाखियों को फेंकना होगा........यह ज़िम्मेदारी हम सभी की है..... खास तौर से युवाओं की

आज विधायक, सांसद और अन्य राजनैतिक पदाधिकारी अधिकांशत:, जनता की सेवा के नाम पर लोगों से वोटों की भीख मांग कर स्वयं करोड़पति, अरबपति बनने का खेल रच रहे हैं. पर अधिकांशत: जनता जैसी आज़ादी के समय थी, वैसी ही आज भी है. यदि आम जनता ने जो भी प्रगति की है वह अधिकांशत: उसके अपने प्रयत्नों से हुई है.

बहुत से ऐसे विषय हैं, जहाँ तुम्हें बहुत ही गंभीरता पूर्वक सोचना होगा और बिना राजनीतिक लाभ को बीच में लाये हुए मात्र जनहित हेतु दूरगामी लाभ हेतु कुछ कठोर फैसले लेने होंगे.

क्या तुमने इस बात पर अपना ध्यान दिया है कि इस देश में पहली पंचवर्षीय योजना से अब तक ग्रामीण तथा शहरी विकास के किए कितने हजारों करोड़ रूपये व्यय किए जा चुके हैं. परन्तु शर्म की बात है कि आज भी हमारे अधिकांश ग्रामों में पीने योग्य पानी नहीं है, पक्की सड़कें नहीं हैं, बिजली नहीं है, चिकित्सालय, प्राथमिक विद्यालय जैसी मूलभूत सुविधाये नहीं है,.

प्रश्न ये है कि क्यों नहीं हैं?.........हजारों करोड़ रूपये जो इन ग्रामों के विकास हेतु व्यय किए गए, वे कहाँ हैं? जितने भी रूपये अब तक ग्रामों एवं नगरीय विकास के लिए व्यय किए गए हैं उनसे तो एक बहुत ही समृध्द, विकसित एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त नया राष्ट्र स्थापित हो जाता. परन्तु आज स्वतंत्रता के ६० वर्ष बाद भी हमारे गाँव तथा अधिकांश नगर मूलभूत नागरिक सुविधाओं से वंचित हैं. किसकी ज़िम्मेदारी है ये? यह सोचना होगा...........जिस देश में किसी भी योजना का सिर्फ़ २०-२५ प्रतिशत भाग धन ही विकास योजनाओं में लगता हो वहां का भविष्य क्या होगा? यह स्वयं स्पष्ट है. शेष धन ठेकेदारों, मंत्री, विधायकों, अधिकारियों की जेबों में जाता है........तभी ये सभी इन पदों पर येन केन प्रकारेण आसीन होने के लिए जद्दोजहद किया करते हैं......और नाम देश सेवा का देते हैं........

कौन सवाल उठाएगा इन धांधलियों पर?.....कौन रोकने की कोशिश करेगा इन अपराधों को? क्या राजनीतिक दल, अधिकारी.......नहीं कदापि नहीं ....इनमें से तो अधिकांशत: इन अपराधों में स्वयं ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त हैं.....तो फ़िर कौन होगा........? क्या भगवान् ! नहीं वो भी नहीं...........केवल तुम हाँ सिर्फ़ तुम ही हो जो एक सशक्त हथियार, रणभेरी सी गर्जना करती आवाज़ बन कर इन लोगों से मुकाबला कर सकते हो.....सिर्फ़ तुम............तुम अर्थात आज के नौजवान ...युवा पीढी, ……..मत थामो दामन किसी भी राजनीतिक दल का ....मत बनो किसी के हाथ का खिलौना.......मत आओ किसी तुच्छ से लालच में ....मत देखो सिर्फ़ अपना छुद्र सा स्वार्थ........विराट बनो......विशाल बनो......व्यापक बनो

जाति और धर्म को घर के भीतर रखो......समाज में नहीं.......छोडो इन छिछली बातों को .....छोडो प्रतिशोध के विचारों को....प्रगति की सोचो...... सदभाव की सोचो....और यह तभी सम्भव है जब तुम किसी भी राजनैतिक दल के मायाजाल में नहीं फंसोगे.......व्यक्तिगत प्रगति के विचार से अलग सोचोगे..........अपना उत्पीडन किसी भी प्रकार के मायावी नेताओं से मत कराना........तुम में वो अपूर्व शक्तियाँ हैं जो कि समाज की दिशा बदल सकती हैं राष्ट्र को फ़िर से सोने की चिडिया बना सकती हैं........लेकिन तुम्हें सोचना होगा...... समझना होगा, विश्लेषण करना होगा, एकजुट होना होगा, फ़िर एक निर्णय लेना होगा.....निर्णय परिवर्तन का,.. निर्णय शासन, प्रशासन और व्यवस्था से जवाब मांगने का......

क्यों कि यही तुम्हारा आज का कर्म है, आज का धर्मं है, सोचो देश है तो तुम हो हम हैं सब कुछ है.......यदि नहीं तो कुछ भी नहीं ..........

अपने सकारात्मक परिवर्तन की क्रांति से भयाक्रांत कर दो इन भ्रष्टाचारियों को, जिन्होंने देश के शरीर से एक एक बूंद खून चूस कर स्विस बैंकों में जमा किया हुआ है........अपने विचारों की आवाज़ इतनी बुलंद करो कि उसकी गर्जना सुन कर इनके पैर कांपने लगें, और ये सदैव के लिए आत्मसमर्पण करते हुए राष्ट्र की प्रगति की मुख्य धारा में शामिल हो जाएँ आज हमारी जाति केवल एक ही है "भारतीयता" और हमारा केवल एक ही धर्म है "राष्ट्र धर्म" और कुछ नहीं

आज सभी भारतवासियों के आत्मचिंतन का समय है....हमें हमारे भविष्य एवं वर्तमान के लिए राष्ट्र की आत्मा का समुद्र मंथन करना पडेगा , राष्ट्र एवं जन मानस के लिए यदि इस मंथन से निकले विष को भी पीना पड़े तो पीना ही होगा क्यों कि हम ही तो हैं राष्ट्र की आत्मा.... हम अर्थात भारत के नागरिक...........विशेष कर युवा.............

मधुकर पाण्डेय

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

सबसे पहले हमारे चैनल पर ये तस्वीर एक्सक्लूसिव है........!!!!!!!!!!


मुम्बई के २६ नवम्बर २००८ के आतंकवादी हमलों ने बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए हैं. लगभग सभी राजनैतिंक दलों पर सवालों की एक जड़ी सी लग गई है. हमारा टेलीविजन समाचार मीडिया इन सवालों को उठाने में बहुत ही महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहा है..

हमारे कार्यक्रम एंकर्स एवं सम्वाददाता इन सवालों को तीखा करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. सभी चैनल अपने अपने संवाददाताओं को इस हमले की पूरी रपट बहादुरी पूर्वक दिखाने के लिए, वीरों की तरह अपने अपने चैनलों पर प्रचारित व् प्रसारित कर रहे हैं, करना भी चाहिए क्योंकि यह एक गंभीर मामला था और क्यों कि ऐसा सजीव प्रसारण करने का अवसर समाचार चैनलों को कभी कभी ही हाथ आता है.

इस बहादुरी के कारनामों ने जहाँ एक तरफ़ भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों को एक सनसनी खेज़ घटना का सजीव प्रसारण देखने का अवसर दिया वहीं भारतीय समाचार चैनलों की कार्यप्रणाली पर अनेकों प्रश्न भी खडे कर दिए हैं.

"सबसे पहले, सबसे तेज़, सिर्फ़ इस चैनल पर, एक्सक्ल्यूसिव, केवल हमारे चैनल पर ही........ " आदि आदि.............जुमलों ने किसी भी सम्वेदनशील घटना का मजाक सा बना दिया.

अति उत्साह में हमारे चैनलों ने कमांडो कार्रवाई को लाइव दिखाया, एक नहीं लगभग सभी चैनलों ने ऐसा ही किया........सवाल है क्यों? क्या यह कारर्वाई लाइव दिखाना जरूरी था.? क्या इसे डेफर्ड प्रसारण के तौर पर नहीं दिखाना चाहिए था. नारीमन भवन में एक बहुत ही असाधारण सैन्य कारर्वाई चल रही थी, ..कमांडो आपरेशन एक आखिरी एवं रणनीतिक निर्णय था. क्यों कि वहां फंसे इजरायली बंधकों को जीवित एवं सुरक्षित लाने की योजना थी........परन्तु हमारे वीर संवाददाताओं ने अति उत्साह में इसे सारे विश्व के सामने सार्वजनिक कर दिया, जिसका फायदा उठाने में संभवतः वे आतंकवादी तथा उनके शुभचिन्तक भी शामिल रहे होंगे जो इन “गोपनीय रणनीतिक फैसलों और कारवाईयों” को भारतीय टीवी समाचार चैनलों की नासमझी से सजीव देख रहे हों. तथा कमांडो कारवाई को, उनके गुप्त हमलों के ठिकानों को भी हमारे चैनलों की कृपा से देख रहे हों.

कुछ ऐसा ही नज़ारा ताज महल होटल पर भी था. आतंकवादियों को शायद मालूम ही न पड़ता कि हमारे सेना, पुलिस के जवान कहाँ कहाँ पर तैनात हैं पर चैनलों की कृपा से उनके लिए यह सुविधा भी उपलब्ध थी...कि “भाई देखो हमने कहाँ कहाँ तुम्हारे स्वागत के लिए अपने सैनिक तैनात कर दिए है....बस निशाना लगाओ और भून डालो ८-१० को.............. “

ये कैसी पत्रकारिता थी जो हमारे सुरक्षा बालों और सेना की सभी कारवाईयों को स्पष्ट रूप से सार्वजनिक कर रहे थे. इस अत्याधुनिक संचार के युग में केवल ताज, ओबरॉय और नारीमन भवन के टीवी बंद कराने से काम नहीं चलता है... आज विश्व में कहीं पर भी बैठ कर आप बहुत से चैनलों को देख सकते हैं यहाँ तक कि अपने मोबाईल सेट पर भी. क्या यह सम्भव नहीं था कि पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं ने या भारत में ही बैठे उनके समर्थक, हमारी सारी सैन्य तैयारियों एवं कारवाईयों के इन सीधे प्रसारणों को देख कर वहीं से बैठे बैठे उन आतंकवादियों को दिशा निर्देश दे रहे हों. हो सकता है इन्ही कारणों से कमांडो कार्रवाई में इतनी देर हुई.........

हद तो तब हुई जब ताज वाले घटनास्थल पर तमाम चैनलों ने बहुत ही रणनीतिक दृष्टिकोण से गेट वे आफ इंडिया के ऊपर तैनात स्नाइपर सैनिकों को दिखाना शुरू कर दिया और चुन चुन कर वो स्थान दिखाने लगे जहाँ हमारे सैनिक मोर्चा लिए तैनात थे......

और एक समय ऐसा भी आया कि सैन्य बलों ने इन चैनलों को सजीव प्रसारण न दिखाने का आदेश दिया. क्यों कि इससे उनकी कारर्वाई में बाधा आ रही थी...........

एक नज़ारा और.........इसी घटना के मद्देनज़र गुजरात पुलिस के कमिश्नर की एक गोपनीय चिट्ठी जो उन्होंने अपने सभी सम्बन्धित अधिकारियों को भेजी थीं, जिसमें चेन्नई की दो संदिग्ध कंपनियों का ज़िक्र था कि उन पर इन आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुँचाने का संदेह है......... हमारे अति उत्साही चैनलों ने "सबसे पहले, एक्सक्ल्यूसिव" बनने की होड़ में उन दोनों कम्पनियों का नाम भी उजागर कर दिया.......अब वह कौन सी मूर्ख कम्पनी होगी जो इस खुलासे के बाद अपना यह काम जारी रखेगी.........समझ में नहीं आया कि हमारे चैनलों ने उसको पकड़वाने में मदद की या उसको ही संभल जाने में मदद की.... लेकिन अदूरदर्शिता एवं अपरिपक्वता का इससे बड़ा उदाहरण और कौन होगा............

४ दिसम्बर की शाम का एक ताजा उदाहरण है कि आतंकी हमले की धमकी के मद्देनज़र नई दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही कड़ी कर दी गई है. इस समाचार को महज़ सीधे सादे शब्दों में बताया जा सकता था परन्तु मुंबई हमलों के बहुत से अपरिपक्व प्रसारण की ही भांति यहाँ पर भी वह सम्वाददाता न केवल हवाई अड्डे को दिखा रहा था बल्कि वह सभी तरह की तकनीकी तथा गैर तकनीकी सुरक्षा व्यवस्थाओं का हवाला भी दे रहा था कि “अब यहाँ कितनी संख्या में कमांडो तैनात किया गए हैं, कहाँ कहाँ किस सामग्री का बंकर बनाया गया है, कौन कौन से जांच के यन्त्र लगाए गए हैं , उनकी क्षमता क्या है........आदि आदि” यह हमारी समझ के बाहर है ऐसी क्या जरूरत थी कि हमारी गोपनीय सुरक्षा व्यवस्था की इतनी विस्तृत जानकारी सार्वजनिक की जाए?. .....हम किसकी मदद कर रहे हैं???? .आम जनता की या आतंकवादियों की ........

सारी शासन-प्रशासन एवं सामाजिक , राजनैतिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने वालों को, स्वयं ही इन अवांछित, अपरिपक्व एवं अदूरदर्शीय आचरण को त्यागना होगा...तथाकथित सबसे तेज़ रहने की होड़ से बाज आना पडेगा.....वरना टीवी चैनलों की सत्यता एवं निष्ठा पर आम जनमानस संदेह करने लगेगा.....कमोवेश आज के वातावरण में यह आशंका असंभव नहीं लगती.

पत्रकारिता इस लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है....परन्तु आज यह महज़ व्यापार बन गया है......यह सत्य है कि पत्रकारिता का कोई भी माध्यम हो चाहे वह समाचार पत्र हो या टीवी, सभी एक भारी पूंजीगत व्यवसाय हैं....इनको चलाने वाले विशुद्ध रूप से व्यवसायी हैं, उनका मूल उद्देश्य सिर्फ़ धन कमाना है, यह ग़लत भी नही लेकिन हमें पत्रकारिता की गुणवत्ता एवं व्यवसाय के बीच एक संतुलन बनाना होगा जिससे महज विज्ञापन एवं टीवी रेटिग हासिल करने के लिए पत्रकारिता के प्राथमिक सिद्धांतों की हत्या करने से बचा जा सके.

सारी दुनिया और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ने वाले समाचार माध्यमों, खास तौर पर टीवी समाचार चैनलों को आत्म अवलोकन करना होगा, आत्म चिंतन करना होगा, ताकि पत्रकारिता का एक उच्च मानदंड स्थापित किया जा सके और किसी भी “राजनैतिक धारा विशेष के प्रति झुकाव तथा अकारण विरोध” के चंगुल से बाहर निकल कर निष्पक्ष, स्पष्ट एवं निर्भीक पत्रकारिता को स्थापित किया जा सके.......ताकि दिल्ली के किसी स्कूल टीचर के ऊपर देह व्यापार का स्टिंग आपरेशन तथा ग़लत आरोप लगा कर एक रात में लोकप्रियता हासिल करने का कुत्सित प्रयास न हो और किसी बेकसूर व्यक्ति के चरित्र हनन एवं सामाजिक बहिष्कार की पीडा से वह व्यक्ति और आम जन मानस बच सके..

नित नए टीवी समाचार चैनलों की बाढ़ ने एक ओर बहुत से अच्छे तथा तथा दूसरी ओर बहुत से नासमझ. अपरिपक्व एंकर्स तथा सम्वाददाताओं की एक सेना सी खड़ी कर दी है जिन्हें पत्रकारिता की एक विस्तृत एवं गहन शिक्षा की महती आवश्यकता है, ताकि वे जिस भी विषय पर अपना कार्यक्रम कर रहे हों, उस विषय की संवेदनशीलता एवं गंभीरता की उन्हें पूरी जानकारी हो.

पत्रकारिता क्या होती है? विषय की संवेदनशीलता क्या होती है? किसी भी समस्या या घटना को किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए? किसी भी धटना की गैरजिम्मेदारी से की गई रपट समाज के लिए , राष्ट्र के लिए एवं किसी व्यक्ति के लिए कितनी घातक हो सकती है, टीआरपी और विज्ञापन पाने की होड़ में, इन बिन्दुओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए. नहीं तो इसके दूरगामी घातक परिणाम होंगे.

आज के नौजवान, तेज़ तर्रार, अति उत्साही पत्रकारों को क्या स्व० गणेश शंकर विद्यार्थी जी का नाम मालूम है, जिन्होंने पत्रकारिता का एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया था, अगर नहीं मालूम है तो थोड़ा परिश्रम करके उनके बारे में पढ़ ज़रूर लेना चाहिए, इससे उनके कार्यों में एक नई दृष्टि और पैनापन आयेगा.

अभी बहुत परिपक्वता की आवश्यकता है हमारे समाचार टीवी चैनलों को.
पर उम्मीद पर दुनिया कायम है........हमें भी उम्मीद है कि हम भी अच्छे, संतुलित, निष्पक्ष एवं ज़िम्मेदारी से पूर्ण टीवी समाचार देख सकेंगे...........................

मधुकर पाण्डेय

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

“ जागो, उठो और लक्ष्य पूर्ण होने तक अटल रहो”........

क्रांति और एक नये स्वतंत्रता संग्राम का समय आ गया है..........अब अपने हाथों से मोमबत्तियां छोड़ दो .......अब अपने हाथों में अपने अधिकारों को थामो .........अपने दिल एवं दिमाग में कुंठा को मत पालो ......उसे जागृत करो और एक महावीर की तरह युद्ध भूमि में अपने शत्रुओं को ललकारो ताकि आसमान काँप उठे और धरती थरथरा उठे.......क्यों कि यह देश तुम्हारा है........यह देश तुम्हारे भविष्य का कर्मक्षेत्र है........इस कर्मक्षेत्र की सुरक्षा एवं प्रगति के लिए अपने हाथों में अपने मूलभूत अधिकारों के शस्त्र उठाओ और चुनौती दो हर उस व्यक्ति, संस्था एवं देश को जो तुम्हारे देश के साथ गद्दारी करे, ........यही से आरम्भ करो अपने देश की स्वतंत्रता का एक नया संग्राम.........

मुंबई की आतंकवादी घटनाओं ने राष्ट्र के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. आज की परिस्तिथियों में हमारा कर्तव्य क्या है? एक शासक होने के नाते, एक प्रशासक होने के नाते, एक जन प्रतिनिधि होने के नाते........और सबसे पहले एक नागरिक होने के नाते...
"हम जनप्रतिनिधि, शासक, प्रशासक बाद में हैं, सबसे पहले एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं."
एक नागरिक होने के नाते हमारे देश के प्रति बहुत से कहे और अनकहे उत्तरदायित्व भी हैं.

हमने धर्म आधारित संग्राम बहुत लड़ लिए पर अब हम सभी को अपने -अपने निजी धर्म को अपने घर एवं अंतरतम में रख कर एक सबसे प्राथमिकता वाले धर्म की राह पकड़नी है और वह है " राष्ट्र धर्म".

जो भी व्यक्ति, समुदाय राष्ट्र को पीछे और अपने निजी धर्म को पहले रखता है , उनसे हमारी विनम्र प्रार्थना है कि वे इस तथ्य से परिचित हों कि यदि देश है तो वे हैं, उनका भी अस्तित्व है और यदि देश ही नहीं है तो वो भी नहीं हैं, जब व्यक्ति स्वयं ही नहीं है तो उसका धर्म कहाँ है. . यही है "राष्ट्र धर्म" की सच्ची परिभाषा.

जब जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है तो उसके सामने बड़े ही लोक लुभावन वायदे किए जाते हैं परन्तु सत्ता आते ही वह सब विस्मृत हो जाते हैं. सरकारें बनती हैं जनता की सेवा के लिए, राष्ट्र की प्रगति एवं भलाई के लिए........परन्तु सभी अपने अपने राष्ट्र धर्म को भूल कर स्वयं सेवा में लिप्त हो जाते हैं.

बहुत से प्रश्न है जिन्हें आज की जनता खासतौर पर युवाओं को समझना होगा और जन प्रतिनिधियों को, शासन चलाने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों को अपने प्रति उत्तरदायी बनाना होगा.

भारत की जनता सबसे अधिक शक्तिशाली है उसे सदैव प्रश्न पूछने का अधिकार है. भारत की जनता को "बेचारगी" की भावना से तुरंत ही बाहर आना होगा. उसे हर अधिकार है कि वह जन मानस की सुरक्षा, प्रगति एवं खुशहाली के लिए हमेशा इन जनप्रतिनिधियों से प्रश्न कर सके और इन सभी को जिम्मेदारियों के कठघरे में खडा कर सके. ये जन प्रतिनिधि इस स्थिति को प्राप्त हो जाएँ कि इन्हें जनता से भय लगने लगे और यह तभी सम्भव है जब हमारा युवा जागेगा. हमारी महिलायें जागेंगी और हमारे बच्चे जागेंगे.................हम एक राष्ट्र के रूप में जागेंगे.

मुझे डर है कि कहीं हम मुम्बई में हुए इस नरसंहार को भूल न जाएँ और फ़िर सो जाएँ जैसा कि सदैव से होता आया है कि हमारी जनता की याददाश्त बहुत ही कमज़ोर होने के कारण बहुत से ऐसे हादसों के बाद हम सो गए....हमारे प्रशासक और जन प्रतिनिधि सो गए और सोते ही रहे जब तक कि फ़िर से कोई बड़ा धमाका नहीं हुआ.

प्रश्न पूछो क्यों कि हमारे चुभते हुए प्रश्न राज सत्ता एवं उच्च पदों पर बैठे हुए लोगों को बेचैन कर देंगे...... उन्हें बेचैन करने का हमें पूर्ण अधिकार है क्यों कि वे हम जनता की सेवा के लिए चुन कर वहां भेजे गए हैं न कि हम पर शासन करने के लिए. अब समय आ गया है कि हम जनता अपने जन प्रतिनिधियों पर शासन करें न कि वे हम पर..

हाथ में हथियार नहीं बल्कि हाथों में जो अधिकार हैं, अभी उनका ही प्रयोग किया जाए क्यों कि वह किसी भी हथियार से ज्यादा शक्तिशाली है. वह अधिकार है "प्रश्न पूछने का अधिकार" . उत्तर मांगो क्यों कि यह तुम्हारा मौलिक अधिकार है.....इस अधिकार के लिए किसी से भीख मांगने कि, किसी से आज्ञा लेने कि आवश्यकता नहीं क्यों कि जिस तरह से लोकमान्य तिलक जी ने कहा था कि "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" ठीक वैसे ही " शासन, प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों से प्रश्न पूछना, हमारा प्रथम एवं मौलिक अधिकार है."

राष्ट्र धर्म के इस सशक्त हथियार कों हमें अपने हाथों में लेने होगा अभी और इसी समय प्रश्न करो,

हमें यह देखना चाहिए कि हमारे पास के ही एक देश थाईलैंड में किस प्रकार वहाँ की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध एक नायाब जन आन्दोलन हुआ .....न किसी राजनैतिक दल के समर्थन की आवश्यकता और न ही कोई नया राजनैतिक दल का गठन, बस एक जुट , एक मत, एक आवाज़, एक संकल्प के साथ सरकार के विरुद्ध एकजुट हुए वहाँ के लोग, वहां का अधिकांश स्वतः स्फूर्त जन मानस....जो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं. देश की प्रगति एवं प्रतिष्ठा के लिए कटिबद्ध हैं........हमें अपने से भी यह प्रश्न पूछना होगा कि क्या उतनी ही कटिबद्धता हममे भी है?......क्या हम अब तक राजनैतिक एवं सरकारी भ्रष्टाचार के सहयोगी नहीं रहे? क्यों कि हमने ही हर बार ऐसे ही गैर जिम्मेदार
एवं भ्रष्टाचारी नेताओं को चुन कर भेजा.....

आज सिर्फ़ हमें अपने इन्हीं अज्ञानतावश किए गए पापों या भूलों का प्रायश्चित करना होगा.....यदि ईमानदारी से हमने अतीत की इन भूलों का सही एवं शीघ्र प्रायश्चित किया तो वह दिन दूर नहीं कि हम सब अपने इस राष्ट्र को एक सशक्त तथा स्वच्छ राष्ट्र के मार्ग पर ले जा सकेंगे...... हमें भी बदलना होगा....हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा.... समाज बदला तो सामूहिक सोच बदलेगी......जब समाज की सामूहिक सोच बदलेगी तो राष्ट्र की तस्वीर बदलेगी........इस लिए स्वयं को भी बदलना होगा......

उत्तर मांगो. पूछो कि
- "तुम तो हमारे ही प्रतिनिधि हो, तुम्हें क्यों जेड+ सुरक्षा की आवश्यकता है? यदि तुमने कोई गलत कार्य नहीं किया तो तुम्हें किस बात का डर है?".

- तुम तो इतने धनवान न थे अचानक जन प्रतिनिधि बनने के बाद, मंत्री बनने के बाद तुम्हारे पास इतना धन कहाँ से आ गया?

- जनता की सेवा करने के लिए तुम्हें मंत्री पद ही की क्यों आवश्यकता है? क्या बाहर रह कर तुम हमारी सेवा और हमारे हितों का ध्यान नहीं रख पाओगे? तुम्हें मंत्री बनने के लिए, किसी सरकारी उपक्रम के अध्यक्ष बनने के लिए तो हमने नहीं चुना था?

- देश की आजादी के बाद भी गाँवों में आज भी पीने का पानी, खेतों को पानी, बिजली, विद्यालय और अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाएँ क्यों नहीं हैं?

- देशं की शिक्षा प्रणाली सम्पूर्ण देश में एक सी क्यों नहीं है? क्यों सम्पन्नों और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के बच्चों के पाठ्यक्रमों में अन्तर है? इसमें तो अलग से कोई पैसा नहीं लगता..फ़िर यह भेदभाव पूर्ण शिक्षा प्रणाली क्यों? भाषा अलग हो सकती है लेकिन पाठ्यक्रम अलग क्यों?

- देश की सेना के लिए छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें क्यों नहीं लागू की जा रहीं? वो कौन से कारण हैं जो इन वीर सैन्य अधिकारियों और जवानों को उनका बहुलंबित अधिकार दिलाने में बाधक हैं? .

- देश हित, समाज हित के ऐसे ही अनगिनत प्रश्न करो क्यों कि अब जनता अपने मतों का मूल्य चाहती है.........


आज देश को फ़िर से एक नए स्वतंत्रता संग्राम की आवश्कता है,

- देश को इन तथाकथित गैर जिम्मेदार नेताओं और शासकों से मुक्ति दिलाने के लिए.

- देश हित, प्रदेश हित एवं जनहित के कार्यों के लिए जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासकों को जवाबदेह बनाने के लिए.

- देश को सभी क्षेत्रों में स्वावलंबी बनने के लिए.

- स्वयं की सुविधा एवं ग़लत कार्यों के लिए घूस देने की कथित परम्परा से मुक्ति दिलाने के लिए.

- देश के स्वाभिमान एवं सार्वभौमिकता बनाये रखने के किए.

आज स्वामी विवेकानंद जी के उस सशक्त आह्वाहन का स्मरण हो जाता है कि “जागो, उठो और लक्ष्य पूर्ण होने तक अटल रहो”........

आज देश को धर्म निरपेक्षता जैसे बेमानी शब्दों एवं ढोग की आवश्यकता नही वरन राष्ट्रधर्म जैसे व्यापक, विशाल एवं सशक्त धर्म की आवश्यकता है.........


मधुकर पाण्डेय
मुंबई

यह वक्त मोमबत्ती हाथ में पकड़ कर दुख मनाने का नहीं है

जब तक हमारे देश में सफेदपोश नेता जी लोगों का राज रहेगा तब तक देश के मुंह पर कालिख ही लगती रहेगी। आज की राजनीतिक व्यवस्था में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है चाहे वह आज का युवा राजनीतिक हो या पुराने सड़े-गले गंधाते नेता। किसी में भी देश के प्रति जिम्मेदारी और वफादारी की भावना है ही नहीं। सभी बिल्लियों की तरह सत्ता का छींका टूटने या तोड़ने की राह देखते रहते हैं। जब तक देश जाति, भाषा, प्रांतीयता और अन्य तुच्छ मामलों में उलझा रहेगा। इन नेताओं की दुकानें चलती रहेंगी।

आज देश को स्वामी विवेकानंद जैसे युवा क्रांतिकारी संत के नेतृत्व की आवश्यकता है। नपुंसक नेतृत्व की नहीं। आज देश को फिर से एक क्रांति की अति आवश्यकता है और वह है देश की राजनीतिक गंदगी को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्रांति की आवश्यकता। विश्व के सभी देशों में हर देश का एक राष्ट्रीय धर्म होता है, राष्ट्रीय भाषा होती है इसलिए वहां के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना स्वत: स्फूर्त होती ही है। अफसोस है कि हमारे यहां इस भावना को जगाने के लिए एक करगिल, एक मुंबई हमला ही क्यों दरकार होता है।

एक तथ्य और... हमारे यहां राजनीतिक कामधेनु 'धर्म निरपेक्षता’ का राज है... ऐसा लगता है कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया में यदि धर्म निरपेक्षता नहीं है तो वहां क्या साम्प्रदायिकता का राज है?दुख की बात है कि जिस देश के ऋषि मुनियों ने 'सर्व धर्म समभाव’ एवं 'वसुधैव कुटुम्बकम’ का पाठ पढ़ाया हो वहां साम्प्रदायिकता एवं धर्म निरपेक्षता की वकालत करने की आवश्यकता ही क्या है? लेकिन इसकी वकालत तो इन राजनीतिकों को सत्ता हासिल करने के लिए बहुत ही जरूरी है। वरना ये तो बेचारे मृत प्राय ही हो जाएंगे क्योंकि यह तो उनके लिए कामधेनु और प्राण वायु का काम जो कर रही है और उस पर सबसे अफसोस तब होता है जब मुंबई हमलों में शामिल एक आतंकवादी एक टीवी चैनल पर हमारे तथाकथित 'सच्चर कमीशन’ की सिफारिशों को लागू करने की बात करता है। प्रश्न है एक आतंकवादी के मुंह से इन बातों की जरूरत क्यों, सच्चर कमीशन की वकालत क्यों...?

हम सभी को तत्काल आत्मावलोकन की आवश्यकता है। वरना मुट्ठी भर आतंकवादियों ने जब तीन दिनों तक पूरे देश को बेहाल कर दिया तो आगे क्या हो सकता है इसकी कल्पना हम कर सकते हैं। हमें आज जाति, भाषा, प्रदेश को भूलते हुए सिर्फ अपने देश भारत के बारे में सोचना होगा क्योंकि यदि भारत सुरक्षित है तो हम सुरक्षित हैं लेकिन भगवान के लिए, देश के लिए और स्वयं अपने अस्तित्व के लिए इन नेताओं का हित कतई मत सोचना।

मैं मुंबई में ही रहता हूं और इस महानगर की व्यथा से भलीभांति परिचित भी हूं... यहां की तथाकथित 'मुंबई स्पिरिट’ से जी भर गया है... दरअसल यह मुंबई स्पिरिट नहीं बल्कि इस शहर के अधिकांश लोगों की आजीविका की वीभत्स विवशता है जो उसे अपने परिवार की सांसें चलाने के लिए प्राण हथेली पर लेकर दो जून की रोटी की व्यवस्था करने के लिए घर से बाहर निकलने को विवश करती है... जिसे इस शहर के चंद तथाकथित सम्भ्रांत व्यक्तियों के क्लबों ने 'मुंबई स्पिरिट’ का नाम देकर समाचार माध्यमों में अपनी निरर्थक, निष्प्रयोज्य उपस्थिति दर्शाने का माध्यम बना लिया है... जिनके दर्शन ऐसी घटनाओं के बाद मात्र पेज-3 की पार्टियों की तस्वीरों में ही सम्भव हो पाते हैं।

मेरा यह परम विश्वास है कि किसी भी व्यक्ति से बड़ा और अमर उसका विचार होता है। क्रांतिकारियों को तो मारा जा सकता है परंतु क्रांति के विचारों को कदापि नहीं। यदि इस विश्व पर कोई कौम या कोई नस्ल मानवता विरोधी, विनाशकारी विचारों को जिंदा रखे है मात्र अपने निजी हितों के लिए... तो हमारी संस्कृति ने भी हमें यह शिक्षा दी है कि हम अपने सशक्त एवं समृद्ध सनातन विचारों को बड़ी ही मजबूती से सम्पूर्ण विश्व में फैला दें कि हम 'सर्व धर्म समभाव एवं वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी कालजयी शिक्षा से सुसंस्कृत हैं, लेकिन हमें भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करना आता है... इस कलियुग में भी हमारी सेना के कमांडो ने यह साबित कर दिया है कि इस ऑपरेशन में हमारे सैनिकों ने न जाने कितने विदेशी बंधकों को भी सुरक्षित बाहर एवं जीवित निकाला है जिसमें चीन, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान, कोरिया, इजरायल आदि अनेकों देशों के नागरिक थे और वो भी हमें उतने ही प्रिय थे जितने कि उस हमले में फंसे भारतीय नागरिक। हमारी सनातन संस्कृति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। सेना के इस उदाहरण से हमारे राज नेताओं को चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए जो अपने निजी स्वार्थों के लिए ही जानी जाती है। धर्म, भाषा एवं परप्रांतीयता के नाम पर इस देश के नागरिकों को ही आपस में लड़वा रहे हैं। ऐसे ही निम्न स्तर के तो हमारे नेतागण हैं।

यह वक्त मोमबत्ती हाथ में पकड़ कर दुख मनाने का नहीं है... यह वक्त टेलीविजन चैनलों पर निरर्थक बहस में भाग लेने का नहीं... यह समय दोषारोपण का नहीं... यह समय पाकिस्तान को गालियां देने का नहीं... यह समय लकीरें पीटने का नहीं... यह समय शोक मार्च निकालने का नहीं... बल्कि यह समय आत्मा के समुद्र मंथन का है... यह समय अपने हाथों में इस सनातन देश की जिम्मेदारियों को लेने का है... यह समय देश की रक्षा के लिए स्वयं एक सशक्त सैनिक बनने का है... जिस दिन इस देश का हर एक नागरिक एक स्वत:स्फूर्त सैनिक बनने की ठान लेगा... इस देश की ओर आंख उठाने का सपना भी कोई नहीं देख सकेगा।यह हो सकता है कि हमारा यह विचार शायद विभिन्नताओं से भरे इस विशाल देश में शायद किसी कवि की एक कोरी कल्पना लगे परंतु यदि थोड़ी सी भी संख्या में ही लोग सक्रिय हो गए तो तस्वीर का रूख बदलते देर नहीं लगेगी क्योंकि यह बहुत ही विचारणीय कटुतम सत्य है कि जब सिर्फ 10 आतंकवादियों ने सवा करोड़ की आबादी वाले तथाकथित मुंबई स्पिरिट वाले इस महानगर बल्कि सम्पूर्ण देश को एक तरह से बंधक सा बना लिया था तो क्या इस देश की सवा अरब से भी ज्यादा जनसंख्या में से यदि कुछ भी प्रतिशत लोग जागृत हो गए तो हम समझ सकते हैं कि हम क्या कर सकते हैं।

हमें यह कायरता की विचारधारा को छोड़ना होगा कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान पैदा तो जरूर हों लेकिन हमारे घर में नहीं बल्कि पड़ोसी के घर में... आज हमें शाहरूख खान नहीं, आज हमें गांधी-नेहरू संतति की नहीं... आज हमें अमिताभ बच्चन नहीं... आज हमें मेजर उन्नीकृष्णन जैसे सिंहों की आवश्यकता है, जो अपने माता-पिता की एक मात्र संतान थे... कमांडो गजेन्द्र सिंह जैसे शेरों को पैदा करने की जरूरत है... माइकल जैक्शन जैसे लोगों की नहीं...

जय भारत।

मधुकर पाण्डेय