तुम अब ये मत कहना कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता मुहावरों से अब अपने को धोखा मत दो, क्यों कि ये तुम अपने को नहीं बल्कि आगे आने वाली पीढियों को धोखा दे रहे हो.
विचार बनाओ, विचार को सशक्त बनाओ, क्योंकि व्यक्ति मर सकता है, मारा जा सकता है लेकिन उसके द्वारा उत्पन्न किया गया, प्रसारित किया गया विचार कभी नहीं मरता.....वैचारिक क्रांति की सूत्रपात करो......
१५ अगस्त १९४७ को हम अंग्रेजों के चंगुल से आजाद अवश्य हो गए लेकिन आज ६० वर्ष के बाद भी हम शायद अभी भी ब्रिटिश मानसिकता से अलग नहीं हो पाये हैं. बांटो और राज करो की नीतियों को हमारे राजनीतिज्ञों ने विरासत में प्राप्त कर लिया है जो बदस्तूर अब तक जारी है. आरक्षण, अगडा-पिछडा, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, इन विषाक्त मायाजालों के प्रभाव से बाहर आना ही होगा अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करना होगा, इन सरकारी और राजनीतिज्ञों की भीख में दी हुई वैशाखियों को फेंकना होगा........यह ज़िम्मेदारी हम सभी की है..... खास तौर से युवाओं की
आज विधायक, सांसद और अन्य राजनैतिक पदाधिकारी अधिकांशत:, जनता की सेवा के नाम पर लोगों से वोटों की भीख मांग कर स्वयं करोड़पति, अरबपति बनने का खेल रच रहे हैं. पर अधिकांशत: जनता जैसी आज़ादी के समय थी, वैसी ही आज भी है. यदि आम जनता ने जो भी प्रगति की है वह अधिकांशत: उसके अपने प्रयत्नों से हुई है.
बहुत से ऐसे विषय हैं, जहाँ तुम्हें बहुत ही गंभीरता पूर्वक सोचना होगा और बिना राजनीतिक लाभ को बीच में लाये हुए मात्र जनहित हेतु दूरगामी लाभ हेतु कुछ कठोर फैसले लेने होंगे.
क्या तुमने इस बात पर अपना ध्यान दिया है कि इस देश में पहली पंचवर्षीय योजना से अब तक ग्रामीण तथा शहरी विकास के किए कितने हजारों करोड़ रूपये व्यय किए जा चुके हैं. परन्तु शर्म की बात है कि आज भी हमारे अधिकांश ग्रामों में पीने योग्य पानी नहीं है, पक्की सड़कें नहीं हैं, बिजली नहीं है, चिकित्सालय, प्राथमिक विद्यालय जैसी मूलभूत सुविधाये नहीं है,.
प्रश्न ये है कि क्यों नहीं हैं?.........हजारों करोड़ रूपये जो इन ग्रामों के विकास हेतु व्यय किए गए, वे कहाँ हैं? जितने भी रूपये अब तक ग्रामों एवं नगरीय विकास के लिए व्यय किए गए हैं उनसे तो एक बहुत ही समृध्द, विकसित एवं आधुनिक सुविधाओं से युक्त नया राष्ट्र स्थापित हो जाता. परन्तु आज स्वतंत्रता के ६० वर्ष बाद भी हमारे गाँव तथा अधिकांश नगर मूलभूत नागरिक सुविधाओं से वंचित हैं. किसकी ज़िम्मेदारी है ये? यह सोचना होगा...........जिस देश में किसी भी योजना का सिर्फ़ २०-२५ प्रतिशत भाग धन ही विकास योजनाओं में लगता हो वहां का भविष्य क्या होगा? यह स्वयं स्पष्ट है. शेष धन ठेकेदारों, मंत्री, विधायकों, अधिकारियों की जेबों में जाता है........तभी ये सभी इन पदों पर येन केन प्रकारेण आसीन होने के लिए जद्दोजहद किया करते हैं......और नाम देश सेवा का देते हैं........
कौन सवाल उठाएगा इन धांधलियों पर?.....कौन रोकने की कोशिश करेगा इन अपराधों को? क्या राजनीतिक दल, अधिकारी.......नहीं कदापि नहीं ....इनमें से तो अधिकांशत: इन अपराधों में स्वयं ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त हैं.....तो फ़िर कौन होगा........? क्या भगवान् ! नहीं वो भी नहीं...........केवल तुम हाँ सिर्फ़ तुम ही हो जो एक सशक्त हथियार, रणभेरी सी गर्जना करती आवाज़ बन कर इन लोगों से मुकाबला कर सकते हो.....सिर्फ़ तुम............तुम अर्थात आज के नौजवान ...युवा पीढी, ……..मत थामो दामन किसी भी राजनीतिक दल का ....मत बनो किसी के हाथ का खिलौना.......मत आओ किसी तुच्छ से लालच में ....मत देखो सिर्फ़ अपना छुद्र सा स्वार्थ........विराट बनो......विशाल बनो......व्यापक बनो
जाति और धर्म को घर के भीतर रखो......समाज में नहीं.......छोडो इन छिछली बातों को .....छोडो प्रतिशोध के विचारों को....प्रगति की सोचो...... सदभाव की सोचो....और यह तभी सम्भव है जब तुम किसी भी राजनैतिक दल के मायाजाल में नहीं फंसोगे.......व्यक्तिगत प्रगति के विचार से अलग सोचोगे..........अपना उत्पीडन किसी भी प्रकार के मायावी नेताओं से मत कराना........तुम में वो अपूर्व शक्तियाँ हैं जो कि समाज की दिशा बदल सकती हैं राष्ट्र को फ़िर से सोने की चिडिया बना सकती हैं........लेकिन तुम्हें सोचना होगा...... समझना होगा, विश्लेषण करना होगा, एकजुट होना होगा, फ़िर एक निर्णय लेना होगा.....निर्णय परिवर्तन का,.. निर्णय शासन, प्रशासन और व्यवस्था से जवाब मांगने का......
क्यों कि यही तुम्हारा आज का कर्म है, आज का धर्मं है, सोचो देश है तो तुम हो हम हैं सब कुछ है.......यदि नहीं तो कुछ भी नहीं ..........
अपने सकारात्मक परिवर्तन की क्रांति से भयाक्रांत कर दो इन भ्रष्टाचारियों को, जिन्होंने देश के शरीर से एक एक बूंद खून चूस कर स्विस बैंकों में जमा किया हुआ है........अपने विचारों की आवाज़ इतनी बुलंद करो कि उसकी गर्जना सुन कर इनके पैर कांपने लगें, और ये सदैव के लिए आत्मसमर्पण करते हुए राष्ट्र की प्रगति की मुख्य धारा में शामिल हो जाएँ आज हमारी जाति केवल एक ही है "भारतीयता" और हमारा केवल एक ही धर्म है "राष्ट्र धर्म" और कुछ नहीं
आज सभी भारतवासियों के आत्मचिंतन का समय है....हमें हमारे भविष्य एवं वर्तमान के लिए राष्ट्र की आत्मा का समुद्र मंथन करना पडेगा , राष्ट्र एवं जन मानस के लिए यदि इस मंथन से निकले विष को भी पीना पड़े तो पीना ही होगा क्यों कि हम ही तो हैं राष्ट्र की आत्मा.... हम अर्थात भारत के नागरिक...........विशेष कर युवा.............
मधुकर पाण्डेय
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