मुम्बई के २६ नवम्बर २००८ के आतंकवादी हमलों ने बहुत से प्रश्न खड़े कर दिए हैं. लगभग सभी राजनैतिंक दलों पर सवालों की एक जड़ी सी लग गई है. हमारा टेलीविजन समाचार मीडिया इन सवालों को उठाने में बहुत ही महत्व पूर्ण भूमिका निभा रहा है..
हमारे कार्यक्रम एंकर्स एवं सम्वाददाता इन सवालों को तीखा करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. सभी चैनल अपने अपने संवाददाताओं को इस हमले की पूरी रपट बहादुरी पूर्वक दिखाने के लिए, वीरों की तरह अपने अपने चैनलों पर प्रचारित व् प्रसारित कर रहे हैं, करना भी चाहिए क्योंकि यह एक गंभीर मामला था और क्यों कि ऐसा सजीव प्रसारण करने का अवसर समाचार चैनलों को कभी कभी ही हाथ आता है.
इस बहादुरी के कारनामों ने जहाँ एक तरफ़ भारतीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों को एक सनसनी खेज़ घटना का सजीव प्रसारण देखने का अवसर दिया वहीं भारतीय समाचार चैनलों की कार्यप्रणाली पर अनेकों प्रश्न भी खडे कर दिए हैं.
"सबसे पहले, सबसे तेज़, सिर्फ़ इस चैनल पर, एक्सक्ल्यूसिव, केवल हमारे चैनल पर ही........ " आदि आदि.............जुमलों ने किसी भी सम्वेदनशील घटना का मजाक सा बना दिया.
अति उत्साह में हमारे चैनलों ने कमांडो कार्रवाई को लाइव दिखाया, एक नहीं लगभग सभी चैनलों ने ऐसा ही किया........सवाल है क्यों? क्या यह कारर्वाई लाइव दिखाना जरूरी था.? क्या इसे डेफर्ड प्रसारण के तौर पर नहीं दिखाना चाहिए था. नारीमन भवन में एक बहुत ही असाधारण सैन्य कारर्वाई चल रही थी, ..कमांडो आपरेशन एक आखिरी एवं रणनीतिक निर्णय था. क्यों कि वहां फंसे इजरायली बंधकों को जीवित एवं सुरक्षित लाने की योजना थी........परन्तु हमारे वीर संवाददाताओं ने अति उत्साह में इसे सारे विश्व के सामने सार्वजनिक कर दिया, जिसका फायदा उठाने में संभवतः वे आतंकवादी तथा उनके शुभचिन्तक भी शामिल रहे होंगे जो इन “गोपनीय रणनीतिक फैसलों और कारवाईयों” को भारतीय टीवी समाचार चैनलों की नासमझी से सजीव देख रहे हों. तथा कमांडो कारवाई को, उनके गुप्त हमलों के ठिकानों को भी हमारे चैनलों की कृपा से देख रहे हों.
कुछ ऐसा ही नज़ारा ताज महल होटल पर भी था. आतंकवादियों को शायद मालूम ही न पड़ता कि हमारे सेना, पुलिस के जवान कहाँ कहाँ पर तैनात हैं पर चैनलों की कृपा से उनके लिए यह सुविधा भी उपलब्ध थी...कि “भाई देखो हमने कहाँ कहाँ तुम्हारे स्वागत के लिए अपने सैनिक तैनात कर दिए है....बस निशाना लगाओ और भून डालो ८-१० को.............. “
ये कैसी पत्रकारिता थी जो हमारे सुरक्षा बालों और सेना की सभी कारवाईयों को स्पष्ट रूप से सार्वजनिक कर रहे थे. इस अत्याधुनिक संचार के युग में केवल ताज, ओबरॉय और नारीमन भवन के टीवी बंद कराने से काम नहीं चलता है... आज विश्व में कहीं पर भी बैठ कर आप बहुत से चैनलों को देख सकते हैं यहाँ तक कि अपने मोबाईल सेट पर भी. क्या यह सम्भव नहीं था कि पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं ने या भारत में ही बैठे उनके समर्थक, हमारी सारी सैन्य तैयारियों एवं कारवाईयों के इन सीधे प्रसारणों को देख कर वहीं से बैठे बैठे उन आतंकवादियों को दिशा निर्देश दे रहे हों. हो सकता है इन्ही कारणों से कमांडो कार्रवाई में इतनी देर हुई.........
हद तो तब हुई जब ताज वाले घटनास्थल पर तमाम चैनलों ने बहुत ही रणनीतिक दृष्टिकोण से गेट वे आफ इंडिया के ऊपर तैनात स्नाइपर सैनिकों को दिखाना शुरू कर दिया और चुन चुन कर वो स्थान दिखाने लगे जहाँ हमारे सैनिक मोर्चा लिए तैनात थे......
और एक समय ऐसा भी आया कि सैन्य बलों ने इन चैनलों को सजीव प्रसारण न दिखाने का आदेश दिया. क्यों कि इससे उनकी कारर्वाई में बाधा आ रही थी...........
एक नज़ारा और.........इसी घटना के मद्देनज़र गुजरात पुलिस के कमिश्नर की एक गोपनीय चिट्ठी जो उन्होंने अपने सभी सम्बन्धित अधिकारियों को भेजी थीं, जिसमें चेन्नई की दो संदिग्ध कंपनियों का ज़िक्र था कि उन पर इन आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुँचाने का संदेह है......... हमारे अति उत्साही चैनलों ने "सबसे पहले, एक्सक्ल्यूसिव" बनने की होड़ में उन दोनों कम्पनियों का नाम भी उजागर कर दिया.......अब वह कौन सी मूर्ख कम्पनी होगी जो इस खुलासे के बाद अपना यह काम जारी रखेगी.........समझ में नहीं आया कि हमारे चैनलों ने उसको पकड़वाने में मदद की या उसको ही संभल जाने में मदद की.... लेकिन अदूरदर्शिता एवं अपरिपक्वता का इससे बड़ा उदाहरण और कौन होगा............
४ दिसम्बर की शाम का एक ताजा उदाहरण है कि आतंकी हमले की धमकी के मद्देनज़र नई दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही कड़ी कर दी गई है. इस समाचार को महज़ सीधे सादे शब्दों में बताया जा सकता था परन्तु मुंबई हमलों के बहुत से अपरिपक्व प्रसारण की ही भांति यहाँ पर भी वह सम्वाददाता न केवल हवाई अड्डे को दिखा रहा था बल्कि वह सभी तरह की तकनीकी तथा गैर तकनीकी सुरक्षा व्यवस्थाओं का हवाला भी दे रहा था कि “अब यहाँ कितनी संख्या में कमांडो तैनात किया गए हैं, कहाँ कहाँ किस सामग्री का बंकर बनाया गया है, कौन कौन से जांच के यन्त्र लगाए गए हैं , उनकी क्षमता क्या है........आदि आदि” यह हमारी समझ के बाहर है ऐसी क्या जरूरत थी कि हमारी गोपनीय सुरक्षा व्यवस्था की इतनी विस्तृत जानकारी सार्वजनिक की जाए?. .....हम किसकी मदद कर रहे हैं???? .आम जनता की या आतंकवादियों की ........
सारी शासन-प्रशासन एवं सामाजिक , राजनैतिक व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने वालों को, स्वयं ही इन अवांछित, अपरिपक्व एवं अदूरदर्शीय आचरण को त्यागना होगा...तथाकथित सबसे तेज़ रहने की होड़ से बाज आना पडेगा.....वरना टीवी चैनलों की सत्यता एवं निष्ठा पर आम जनमानस संदेह करने लगेगा.....कमोवेश आज के वातावरण में यह आशंका असंभव नहीं लगती.
पत्रकारिता इस लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है....परन्तु आज यह महज़ व्यापार बन गया है......यह सत्य है कि पत्रकारिता का कोई भी माध्यम हो चाहे वह समाचार पत्र हो या टीवी, सभी एक भारी पूंजीगत व्यवसाय हैं....इनको चलाने वाले विशुद्ध रूप से व्यवसायी हैं, उनका मूल उद्देश्य सिर्फ़ धन कमाना है, यह ग़लत भी नही लेकिन हमें पत्रकारिता की गुणवत्ता एवं व्यवसाय के बीच एक संतुलन बनाना होगा जिससे महज विज्ञापन एवं टीवी रेटिग हासिल करने के लिए पत्रकारिता के प्राथमिक सिद्धांतों की हत्या करने से बचा जा सके.
सारी दुनिया और व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ने वाले समाचार माध्यमों, खास तौर पर टीवी समाचार चैनलों को आत्म अवलोकन करना होगा, आत्म चिंतन करना होगा, ताकि पत्रकारिता का एक उच्च मानदंड स्थापित किया जा सके और किसी भी “राजनैतिक धारा विशेष के प्रति झुकाव तथा अकारण विरोध” के चंगुल से बाहर निकल कर निष्पक्ष, स्पष्ट एवं निर्भीक पत्रकारिता को स्थापित किया जा सके.......ताकि दिल्ली के किसी स्कूल टीचर के ऊपर देह व्यापार का स्टिंग आपरेशन तथा ग़लत आरोप लगा कर एक रात में लोकप्रियता हासिल करने का कुत्सित प्रयास न हो और किसी बेकसूर व्यक्ति के चरित्र हनन एवं सामाजिक बहिष्कार की पीडा से वह व्यक्ति और आम जन मानस बच सके..
नित नए टीवी समाचार चैनलों की बाढ़ ने एक ओर बहुत से अच्छे तथा तथा दूसरी ओर बहुत से नासमझ. अपरिपक्व एंकर्स तथा सम्वाददाताओं की एक सेना सी खड़ी कर दी है जिन्हें पत्रकारिता की एक विस्तृत एवं गहन शिक्षा की महती आवश्यकता है, ताकि वे जिस भी विषय पर अपना कार्यक्रम कर रहे हों, उस विषय की संवेदनशीलता एवं गंभीरता की उन्हें पूरी जानकारी हो.
पत्रकारिता क्या होती है? विषय की संवेदनशीलता क्या होती है? किसी भी समस्या या घटना को किस दृष्टिकोण से देखना चाहिए? किसी भी धटना की गैरजिम्मेदारी से की गई रपट समाज के लिए , राष्ट्र के लिए एवं किसी व्यक्ति के लिए कितनी घातक हो सकती है, टीआरपी और विज्ञापन पाने की होड़ में, इन बिन्दुओं को अनदेखा नहीं करना चाहिए. नहीं तो इसके दूरगामी घातक परिणाम होंगे.
आज के नौजवान, तेज़ तर्रार, अति उत्साही पत्रकारों को क्या स्व० गणेश शंकर विद्यार्थी जी का नाम मालूम है, जिन्होंने पत्रकारिता का एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया था, अगर नहीं मालूम है तो थोड़ा परिश्रम करके उनके बारे में पढ़ ज़रूर लेना चाहिए, इससे उनके कार्यों में एक नई दृष्टि और पैनापन आयेगा.
अभी बहुत परिपक्वता की आवश्यकता है हमारे समाचार टीवी चैनलों को.
पर उम्मीद पर दुनिया कायम है........हमें भी उम्मीद है कि हम भी अच्छे, संतुलित, निष्पक्ष एवं ज़िम्मेदारी से पूर्ण टीवी समाचार देख सकेंगे...........................
मधुकर पाण्डेय
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