क्रांति और एक नये स्वतंत्रता संग्राम का समय आ गया है..........अब अपने हाथों से मोमबत्तियां छोड़ दो .......अब अपने हाथों में अपने अधिकारों को थामो .........अपने दिल एवं दिमाग में कुंठा को मत पालो ......उसे जागृत करो और एक महावीर की तरह युद्ध भूमि में अपने शत्रुओं को ललकारो ताकि आसमान काँप उठे और धरती थरथरा उठे.......क्यों कि यह देश तुम्हारा है........यह देश तुम्हारे भविष्य का कर्मक्षेत्र है........इस कर्मक्षेत्र की सुरक्षा एवं प्रगति के लिए अपने हाथों में अपने मूलभूत अधिकारों के शस्त्र उठाओ और चुनौती दो हर उस व्यक्ति, संस्था एवं देश को जो तुम्हारे देश के साथ गद्दारी करे, ........यही से आरम्भ करो अपने देश की स्वतंत्रता का एक नया संग्राम.........
मुंबई की आतंकवादी घटनाओं ने राष्ट्र के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. आज की परिस्तिथियों में हमारा कर्तव्य क्या है? एक शासक होने के नाते, एक प्रशासक होने के नाते, एक जन प्रतिनिधि होने के नाते........और सबसे पहले एक नागरिक होने के नाते...
"हम जनप्रतिनिधि, शासक, प्रशासक बाद में हैं, सबसे पहले एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं."
एक नागरिक होने के नाते हमारे देश के प्रति बहुत से कहे और अनकहे उत्तरदायित्व भी हैं.
हमने धर्म आधारित संग्राम बहुत लड़ लिए पर अब हम सभी को अपने -अपने निजी धर्म को अपने घर एवं अंतरतम में रख कर एक सबसे प्राथमिकता वाले धर्म की राह पकड़नी है और वह है " राष्ट्र धर्म".
जो भी व्यक्ति, समुदाय राष्ट्र को पीछे और अपने निजी धर्म को पहले रखता है , उनसे हमारी विनम्र प्रार्थना है कि वे इस तथ्य से परिचित हों कि यदि देश है तो वे हैं, उनका भी अस्तित्व है और यदि देश ही नहीं है तो वो भी नहीं हैं, जब व्यक्ति स्वयं ही नहीं है तो उसका धर्म कहाँ है. . यही है "राष्ट्र धर्म" की सच्ची परिभाषा.
जब जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है तो उसके सामने बड़े ही लोक लुभावन वायदे किए जाते हैं परन्तु सत्ता आते ही वह सब विस्मृत हो जाते हैं. सरकारें बनती हैं जनता की सेवा के लिए, राष्ट्र की प्रगति एवं भलाई के लिए........परन्तु सभी अपने अपने राष्ट्र धर्म को भूल कर स्वयं सेवा में लिप्त हो जाते हैं.
बहुत से प्रश्न है जिन्हें आज की जनता खासतौर पर युवाओं को समझना होगा और जन प्रतिनिधियों को, शासन चलाने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों को अपने प्रति उत्तरदायी बनाना होगा.
भारत की जनता सबसे अधिक शक्तिशाली है उसे सदैव प्रश्न पूछने का अधिकार है. भारत की जनता को "बेचारगी" की भावना से तुरंत ही बाहर आना होगा. उसे हर अधिकार है कि वह जन मानस की सुरक्षा, प्रगति एवं खुशहाली के लिए हमेशा इन जनप्रतिनिधियों से प्रश्न कर सके और इन सभी को जिम्मेदारियों के कठघरे में खडा कर सके. ये जन प्रतिनिधि इस स्थिति को प्राप्त हो जाएँ कि इन्हें जनता से भय लगने लगे और यह तभी सम्भव है जब हमारा युवा जागेगा. हमारी महिलायें जागेंगी और हमारे बच्चे जागेंगे.................हम एक राष्ट्र के रूप में जागेंगे.
मुझे डर है कि कहीं हम मुम्बई में हुए इस नरसंहार को भूल न जाएँ और फ़िर सो जाएँ जैसा कि सदैव से होता आया है कि हमारी जनता की याददाश्त बहुत ही कमज़ोर होने के कारण बहुत से ऐसे हादसों के बाद हम सो गए....हमारे प्रशासक और जन प्रतिनिधि सो गए और सोते ही रहे जब तक कि फ़िर से कोई बड़ा धमाका नहीं हुआ.
प्रश्न पूछो क्यों कि हमारे चुभते हुए प्रश्न राज सत्ता एवं उच्च पदों पर बैठे हुए लोगों को बेचैन कर देंगे...... उन्हें बेचैन करने का हमें पूर्ण अधिकार है क्यों कि वे हम जनता की सेवा के लिए चुन कर वहां भेजे गए हैं न कि हम पर शासन करने के लिए. अब समय आ गया है कि हम जनता अपने जन प्रतिनिधियों पर शासन करें न कि वे हम पर..
हाथ में हथियार नहीं बल्कि हाथों में जो अधिकार हैं, अभी उनका ही प्रयोग किया जाए क्यों कि वह किसी भी हथियार से ज्यादा शक्तिशाली है. वह अधिकार है "प्रश्न पूछने का अधिकार" . उत्तर मांगो क्यों कि यह तुम्हारा मौलिक अधिकार है.....इस अधिकार के लिए किसी से भीख मांगने कि, किसी से आज्ञा लेने कि आवश्यकता नहीं क्यों कि जिस तरह से लोकमान्य तिलक जी ने कहा था कि "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" ठीक वैसे ही " शासन, प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों से प्रश्न पूछना, हमारा प्रथम एवं मौलिक अधिकार है."
राष्ट्र धर्म के इस सशक्त हथियार कों हमें अपने हाथों में लेने होगा अभी और इसी समय प्रश्न करो,
हमें यह देखना चाहिए कि हमारे पास के ही एक देश थाईलैंड में किस प्रकार वहाँ की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध एक नायाब जन आन्दोलन हुआ .....न किसी राजनैतिक दल के समर्थन की आवश्यकता और न ही कोई नया राजनैतिक दल का गठन, बस एक जुट , एक मत, एक आवाज़, एक संकल्प के साथ सरकार के विरुद्ध एकजुट हुए वहाँ के लोग, वहां का अधिकांश स्वतः स्फूर्त जन मानस....जो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं. देश की प्रगति एवं प्रतिष्ठा के लिए कटिबद्ध हैं........हमें अपने से भी यह प्रश्न पूछना होगा कि क्या उतनी ही कटिबद्धता हममे भी है?......क्या हम अब तक राजनैतिक एवं सरकारी भ्रष्टाचार के सहयोगी नहीं रहे? क्यों कि हमने ही हर बार ऐसे ही गैर जिम्मेदार
एवं भ्रष्टाचारी नेताओं को चुन कर भेजा.....
आज सिर्फ़ हमें अपने इन्हीं अज्ञानतावश किए गए पापों या भूलों का प्रायश्चित करना होगा.....यदि ईमानदारी से हमने अतीत की इन भूलों का सही एवं शीघ्र प्रायश्चित किया तो वह दिन दूर नहीं कि हम सब अपने इस राष्ट्र को एक सशक्त तथा स्वच्छ राष्ट्र के मार्ग पर ले जा सकेंगे...... हमें भी बदलना होगा....हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा.... समाज बदला तो सामूहिक सोच बदलेगी......जब समाज की सामूहिक सोच बदलेगी तो राष्ट्र की तस्वीर बदलेगी........इस लिए स्वयं को भी बदलना होगा......
उत्तर मांगो. पूछो कि
- "तुम तो हमारे ही प्रतिनिधि हो, तुम्हें क्यों जेड+ सुरक्षा की आवश्यकता है? यदि तुमने कोई गलत कार्य नहीं किया तो तुम्हें किस बात का डर है?".
- तुम तो इतने धनवान न थे अचानक जन प्रतिनिधि बनने के बाद, मंत्री बनने के बाद तुम्हारे पास इतना धन कहाँ से आ गया?
- जनता की सेवा करने के लिए तुम्हें मंत्री पद ही की क्यों आवश्यकता है? क्या बाहर रह कर तुम हमारी सेवा और हमारे हितों का ध्यान नहीं रख पाओगे? तुम्हें मंत्री बनने के लिए, किसी सरकारी उपक्रम के अध्यक्ष बनने के लिए तो हमने नहीं चुना था?
- देश की आजादी के बाद भी गाँवों में आज भी पीने का पानी, खेतों को पानी, बिजली, विद्यालय और अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाएँ क्यों नहीं हैं?
- देशं की शिक्षा प्रणाली सम्पूर्ण देश में एक सी क्यों नहीं है? क्यों सम्पन्नों और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के बच्चों के पाठ्यक्रमों में अन्तर है? इसमें तो अलग से कोई पैसा नहीं लगता..फ़िर यह भेदभाव पूर्ण शिक्षा प्रणाली क्यों? भाषा अलग हो सकती है लेकिन पाठ्यक्रम अलग क्यों?
- देश की सेना के लिए छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें क्यों नहीं लागू की जा रहीं? वो कौन से कारण हैं जो इन वीर सैन्य अधिकारियों और जवानों को उनका बहुलंबित अधिकार दिलाने में बाधक हैं? .
- देश हित, समाज हित के ऐसे ही अनगिनत प्रश्न करो क्यों कि अब जनता अपने मतों का मूल्य चाहती है.........
आज देश को फ़िर से एक नए स्वतंत्रता संग्राम की आवश्कता है,
- देश को इन तथाकथित गैर जिम्मेदार नेताओं और शासकों से मुक्ति दिलाने के लिए.
- देश हित, प्रदेश हित एवं जनहित के कार्यों के लिए जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासकों को जवाबदेह बनाने के लिए.
- देश को सभी क्षेत्रों में स्वावलंबी बनने के लिए.
- स्वयं की सुविधा एवं ग़लत कार्यों के लिए घूस देने की कथित परम्परा से मुक्ति दिलाने के लिए.
- देश के स्वाभिमान एवं सार्वभौमिकता बनाये रखने के किए.
आज स्वामी विवेकानंद जी के उस सशक्त आह्वाहन का स्मरण हो जाता है कि “जागो, उठो और लक्ष्य पूर्ण होने तक अटल रहो”........
आज देश को धर्म निरपेक्षता जैसे बेमानी शब्दों एवं ढोग की आवश्यकता नही वरन राष्ट्रधर्म जैसे व्यापक, विशाल एवं सशक्त धर्म की आवश्यकता है.........
मधुकर पाण्डेय
मुंबई