गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

“ जागो, उठो और लक्ष्य पूर्ण होने तक अटल रहो”........

क्रांति और एक नये स्वतंत्रता संग्राम का समय आ गया है..........अब अपने हाथों से मोमबत्तियां छोड़ दो .......अब अपने हाथों में अपने अधिकारों को थामो .........अपने दिल एवं दिमाग में कुंठा को मत पालो ......उसे जागृत करो और एक महावीर की तरह युद्ध भूमि में अपने शत्रुओं को ललकारो ताकि आसमान काँप उठे और धरती थरथरा उठे.......क्यों कि यह देश तुम्हारा है........यह देश तुम्हारे भविष्य का कर्मक्षेत्र है........इस कर्मक्षेत्र की सुरक्षा एवं प्रगति के लिए अपने हाथों में अपने मूलभूत अधिकारों के शस्त्र उठाओ और चुनौती दो हर उस व्यक्ति, संस्था एवं देश को जो तुम्हारे देश के साथ गद्दारी करे, ........यही से आरम्भ करो अपने देश की स्वतंत्रता का एक नया संग्राम.........

मुंबई की आतंकवादी घटनाओं ने राष्ट्र के सामने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं. आज की परिस्तिथियों में हमारा कर्तव्य क्या है? एक शासक होने के नाते, एक प्रशासक होने के नाते, एक जन प्रतिनिधि होने के नाते........और सबसे पहले एक नागरिक होने के नाते...
"हम जनप्रतिनिधि, शासक, प्रशासक बाद में हैं, सबसे पहले एक जिम्मेदार नागरिक भी हैं."
एक नागरिक होने के नाते हमारे देश के प्रति बहुत से कहे और अनकहे उत्तरदायित्व भी हैं.

हमने धर्म आधारित संग्राम बहुत लड़ लिए पर अब हम सभी को अपने -अपने निजी धर्म को अपने घर एवं अंतरतम में रख कर एक सबसे प्राथमिकता वाले धर्म की राह पकड़नी है और वह है " राष्ट्र धर्म".

जो भी व्यक्ति, समुदाय राष्ट्र को पीछे और अपने निजी धर्म को पहले रखता है , उनसे हमारी विनम्र प्रार्थना है कि वे इस तथ्य से परिचित हों कि यदि देश है तो वे हैं, उनका भी अस्तित्व है और यदि देश ही नहीं है तो वो भी नहीं हैं, जब व्यक्ति स्वयं ही नहीं है तो उसका धर्म कहाँ है. . यही है "राष्ट्र धर्म" की सच्ची परिभाषा.

जब जनता अपने प्रतिनिधि चुनती है तो उसके सामने बड़े ही लोक लुभावन वायदे किए जाते हैं परन्तु सत्ता आते ही वह सब विस्मृत हो जाते हैं. सरकारें बनती हैं जनता की सेवा के लिए, राष्ट्र की प्रगति एवं भलाई के लिए........परन्तु सभी अपने अपने राष्ट्र धर्म को भूल कर स्वयं सेवा में लिप्त हो जाते हैं.

बहुत से प्रश्न है जिन्हें आज की जनता खासतौर पर युवाओं को समझना होगा और जन प्रतिनिधियों को, शासन चलाने वाले अधिकारी एवं कर्मचारियों को अपने प्रति उत्तरदायी बनाना होगा.

भारत की जनता सबसे अधिक शक्तिशाली है उसे सदैव प्रश्न पूछने का अधिकार है. भारत की जनता को "बेचारगी" की भावना से तुरंत ही बाहर आना होगा. उसे हर अधिकार है कि वह जन मानस की सुरक्षा, प्रगति एवं खुशहाली के लिए हमेशा इन जनप्रतिनिधियों से प्रश्न कर सके और इन सभी को जिम्मेदारियों के कठघरे में खडा कर सके. ये जन प्रतिनिधि इस स्थिति को प्राप्त हो जाएँ कि इन्हें जनता से भय लगने लगे और यह तभी सम्भव है जब हमारा युवा जागेगा. हमारी महिलायें जागेंगी और हमारे बच्चे जागेंगे.................हम एक राष्ट्र के रूप में जागेंगे.

मुझे डर है कि कहीं हम मुम्बई में हुए इस नरसंहार को भूल न जाएँ और फ़िर सो जाएँ जैसा कि सदैव से होता आया है कि हमारी जनता की याददाश्त बहुत ही कमज़ोर होने के कारण बहुत से ऐसे हादसों के बाद हम सो गए....हमारे प्रशासक और जन प्रतिनिधि सो गए और सोते ही रहे जब तक कि फ़िर से कोई बड़ा धमाका नहीं हुआ.

प्रश्न पूछो क्यों कि हमारे चुभते हुए प्रश्न राज सत्ता एवं उच्च पदों पर बैठे हुए लोगों को बेचैन कर देंगे...... उन्हें बेचैन करने का हमें पूर्ण अधिकार है क्यों कि वे हम जनता की सेवा के लिए चुन कर वहां भेजे गए हैं न कि हम पर शासन करने के लिए. अब समय आ गया है कि हम जनता अपने जन प्रतिनिधियों पर शासन करें न कि वे हम पर..

हाथ में हथियार नहीं बल्कि हाथों में जो अधिकार हैं, अभी उनका ही प्रयोग किया जाए क्यों कि वह किसी भी हथियार से ज्यादा शक्तिशाली है. वह अधिकार है "प्रश्न पूछने का अधिकार" . उत्तर मांगो क्यों कि यह तुम्हारा मौलिक अधिकार है.....इस अधिकार के लिए किसी से भीख मांगने कि, किसी से आज्ञा लेने कि आवश्यकता नहीं क्यों कि जिस तरह से लोकमान्य तिलक जी ने कहा था कि "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है" ठीक वैसे ही " शासन, प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों से प्रश्न पूछना, हमारा प्रथम एवं मौलिक अधिकार है."

राष्ट्र धर्म के इस सशक्त हथियार कों हमें अपने हाथों में लेने होगा अभी और इसी समय प्रश्न करो,

हमें यह देखना चाहिए कि हमारे पास के ही एक देश थाईलैंड में किस प्रकार वहाँ की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध एक नायाब जन आन्दोलन हुआ .....न किसी राजनैतिक दल के समर्थन की आवश्यकता और न ही कोई नया राजनैतिक दल का गठन, बस एक जुट , एक मत, एक आवाज़, एक संकल्प के साथ सरकार के विरुद्ध एकजुट हुए वहाँ के लोग, वहां का अधिकांश स्वतः स्फूर्त जन मानस....जो अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं. देश की प्रगति एवं प्रतिष्ठा के लिए कटिबद्ध हैं........हमें अपने से भी यह प्रश्न पूछना होगा कि क्या उतनी ही कटिबद्धता हममे भी है?......क्या हम अब तक राजनैतिक एवं सरकारी भ्रष्टाचार के सहयोगी नहीं रहे? क्यों कि हमने ही हर बार ऐसे ही गैर जिम्मेदार
एवं भ्रष्टाचारी नेताओं को चुन कर भेजा.....

आज सिर्फ़ हमें अपने इन्हीं अज्ञानतावश किए गए पापों या भूलों का प्रायश्चित करना होगा.....यदि ईमानदारी से हमने अतीत की इन भूलों का सही एवं शीघ्र प्रायश्चित किया तो वह दिन दूर नहीं कि हम सब अपने इस राष्ट्र को एक सशक्त तथा स्वच्छ राष्ट्र के मार्ग पर ले जा सकेंगे...... हमें भी बदलना होगा....हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा.... समाज बदला तो सामूहिक सोच बदलेगी......जब समाज की सामूहिक सोच बदलेगी तो राष्ट्र की तस्वीर बदलेगी........इस लिए स्वयं को भी बदलना होगा......

उत्तर मांगो. पूछो कि
- "तुम तो हमारे ही प्रतिनिधि हो, तुम्हें क्यों जेड+ सुरक्षा की आवश्यकता है? यदि तुमने कोई गलत कार्य नहीं किया तो तुम्हें किस बात का डर है?".

- तुम तो इतने धनवान न थे अचानक जन प्रतिनिधि बनने के बाद, मंत्री बनने के बाद तुम्हारे पास इतना धन कहाँ से आ गया?

- जनता की सेवा करने के लिए तुम्हें मंत्री पद ही की क्यों आवश्यकता है? क्या बाहर रह कर तुम हमारी सेवा और हमारे हितों का ध्यान नहीं रख पाओगे? तुम्हें मंत्री बनने के लिए, किसी सरकारी उपक्रम के अध्यक्ष बनने के लिए तो हमने नहीं चुना था?

- देश की आजादी के बाद भी गाँवों में आज भी पीने का पानी, खेतों को पानी, बिजली, विद्यालय और अस्पताल जैसी मूलभूत सुविधाएँ क्यों नहीं हैं?

- देशं की शिक्षा प्रणाली सम्पूर्ण देश में एक सी क्यों नहीं है? क्यों सम्पन्नों और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के बच्चों के पाठ्यक्रमों में अन्तर है? इसमें तो अलग से कोई पैसा नहीं लगता..फ़िर यह भेदभाव पूर्ण शिक्षा प्रणाली क्यों? भाषा अलग हो सकती है लेकिन पाठ्यक्रम अलग क्यों?

- देश की सेना के लिए छठवें वेतन आयोग की सिफारिशें क्यों नहीं लागू की जा रहीं? वो कौन से कारण हैं जो इन वीर सैन्य अधिकारियों और जवानों को उनका बहुलंबित अधिकार दिलाने में बाधक हैं? .

- देश हित, समाज हित के ऐसे ही अनगिनत प्रश्न करो क्यों कि अब जनता अपने मतों का मूल्य चाहती है.........


आज देश को फ़िर से एक नए स्वतंत्रता संग्राम की आवश्कता है,

- देश को इन तथाकथित गैर जिम्मेदार नेताओं और शासकों से मुक्ति दिलाने के लिए.

- देश हित, प्रदेश हित एवं जनहित के कार्यों के लिए जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासकों को जवाबदेह बनाने के लिए.

- देश को सभी क्षेत्रों में स्वावलंबी बनने के लिए.

- स्वयं की सुविधा एवं ग़लत कार्यों के लिए घूस देने की कथित परम्परा से मुक्ति दिलाने के लिए.

- देश के स्वाभिमान एवं सार्वभौमिकता बनाये रखने के किए.

आज स्वामी विवेकानंद जी के उस सशक्त आह्वाहन का स्मरण हो जाता है कि “जागो, उठो और लक्ष्य पूर्ण होने तक अटल रहो”........

आज देश को धर्म निरपेक्षता जैसे बेमानी शब्दों एवं ढोग की आवश्यकता नही वरन राष्ट्रधर्म जैसे व्यापक, विशाल एवं सशक्त धर्म की आवश्यकता है.........


मधुकर पाण्डेय
मुंबई

यह वक्त मोमबत्ती हाथ में पकड़ कर दुख मनाने का नहीं है

जब तक हमारे देश में सफेदपोश नेता जी लोगों का राज रहेगा तब तक देश के मुंह पर कालिख ही लगती रहेगी। आज की राजनीतिक व्यवस्था में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है चाहे वह आज का युवा राजनीतिक हो या पुराने सड़े-गले गंधाते नेता। किसी में भी देश के प्रति जिम्मेदारी और वफादारी की भावना है ही नहीं। सभी बिल्लियों की तरह सत्ता का छींका टूटने या तोड़ने की राह देखते रहते हैं। जब तक देश जाति, भाषा, प्रांतीयता और अन्य तुच्छ मामलों में उलझा रहेगा। इन नेताओं की दुकानें चलती रहेंगी।

आज देश को स्वामी विवेकानंद जैसे युवा क्रांतिकारी संत के नेतृत्व की आवश्यकता है। नपुंसक नेतृत्व की नहीं। आज देश को फिर से एक क्रांति की अति आवश्यकता है और वह है देश की राजनीतिक गंदगी को जड़ से उखाड़ फेंकने की क्रांति की आवश्यकता। विश्व के सभी देशों में हर देश का एक राष्ट्रीय धर्म होता है, राष्ट्रीय भाषा होती है इसलिए वहां के नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना स्वत: स्फूर्त होती ही है। अफसोस है कि हमारे यहां इस भावना को जगाने के लिए एक करगिल, एक मुंबई हमला ही क्यों दरकार होता है।

एक तथ्य और... हमारे यहां राजनीतिक कामधेनु 'धर्म निरपेक्षता’ का राज है... ऐसा लगता है कि अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया में यदि धर्म निरपेक्षता नहीं है तो वहां क्या साम्प्रदायिकता का राज है?दुख की बात है कि जिस देश के ऋषि मुनियों ने 'सर्व धर्म समभाव’ एवं 'वसुधैव कुटुम्बकम’ का पाठ पढ़ाया हो वहां साम्प्रदायिकता एवं धर्म निरपेक्षता की वकालत करने की आवश्यकता ही क्या है? लेकिन इसकी वकालत तो इन राजनीतिकों को सत्ता हासिल करने के लिए बहुत ही जरूरी है। वरना ये तो बेचारे मृत प्राय ही हो जाएंगे क्योंकि यह तो उनके लिए कामधेनु और प्राण वायु का काम जो कर रही है और उस पर सबसे अफसोस तब होता है जब मुंबई हमलों में शामिल एक आतंकवादी एक टीवी चैनल पर हमारे तथाकथित 'सच्चर कमीशन’ की सिफारिशों को लागू करने की बात करता है। प्रश्न है एक आतंकवादी के मुंह से इन बातों की जरूरत क्यों, सच्चर कमीशन की वकालत क्यों...?

हम सभी को तत्काल आत्मावलोकन की आवश्यकता है। वरना मुट्ठी भर आतंकवादियों ने जब तीन दिनों तक पूरे देश को बेहाल कर दिया तो आगे क्या हो सकता है इसकी कल्पना हम कर सकते हैं। हमें आज जाति, भाषा, प्रदेश को भूलते हुए सिर्फ अपने देश भारत के बारे में सोचना होगा क्योंकि यदि भारत सुरक्षित है तो हम सुरक्षित हैं लेकिन भगवान के लिए, देश के लिए और स्वयं अपने अस्तित्व के लिए इन नेताओं का हित कतई मत सोचना।

मैं मुंबई में ही रहता हूं और इस महानगर की व्यथा से भलीभांति परिचित भी हूं... यहां की तथाकथित 'मुंबई स्पिरिट’ से जी भर गया है... दरअसल यह मुंबई स्पिरिट नहीं बल्कि इस शहर के अधिकांश लोगों की आजीविका की वीभत्स विवशता है जो उसे अपने परिवार की सांसें चलाने के लिए प्राण हथेली पर लेकर दो जून की रोटी की व्यवस्था करने के लिए घर से बाहर निकलने को विवश करती है... जिसे इस शहर के चंद तथाकथित सम्भ्रांत व्यक्तियों के क्लबों ने 'मुंबई स्पिरिट’ का नाम देकर समाचार माध्यमों में अपनी निरर्थक, निष्प्रयोज्य उपस्थिति दर्शाने का माध्यम बना लिया है... जिनके दर्शन ऐसी घटनाओं के बाद मात्र पेज-3 की पार्टियों की तस्वीरों में ही सम्भव हो पाते हैं।

मेरा यह परम विश्वास है कि किसी भी व्यक्ति से बड़ा और अमर उसका विचार होता है। क्रांतिकारियों को तो मारा जा सकता है परंतु क्रांति के विचारों को कदापि नहीं। यदि इस विश्व पर कोई कौम या कोई नस्ल मानवता विरोधी, विनाशकारी विचारों को जिंदा रखे है मात्र अपने निजी हितों के लिए... तो हमारी संस्कृति ने भी हमें यह शिक्षा दी है कि हम अपने सशक्त एवं समृद्ध सनातन विचारों को बड़ी ही मजबूती से सम्पूर्ण विश्व में फैला दें कि हम 'सर्व धर्म समभाव एवं वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी कालजयी शिक्षा से सुसंस्कृत हैं, लेकिन हमें भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करना आता है... इस कलियुग में भी हमारी सेना के कमांडो ने यह साबित कर दिया है कि इस ऑपरेशन में हमारे सैनिकों ने न जाने कितने विदेशी बंधकों को भी सुरक्षित बाहर एवं जीवित निकाला है जिसमें चीन, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, जापान, कोरिया, इजरायल आदि अनेकों देशों के नागरिक थे और वो भी हमें उतने ही प्रिय थे जितने कि उस हमले में फंसे भारतीय नागरिक। हमारी सनातन संस्कृति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। सेना के इस उदाहरण से हमारे राज नेताओं को चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए जो अपने निजी स्वार्थों के लिए ही जानी जाती है। धर्म, भाषा एवं परप्रांतीयता के नाम पर इस देश के नागरिकों को ही आपस में लड़वा रहे हैं। ऐसे ही निम्न स्तर के तो हमारे नेतागण हैं।

यह वक्त मोमबत्ती हाथ में पकड़ कर दुख मनाने का नहीं है... यह वक्त टेलीविजन चैनलों पर निरर्थक बहस में भाग लेने का नहीं... यह समय दोषारोपण का नहीं... यह समय पाकिस्तान को गालियां देने का नहीं... यह समय लकीरें पीटने का नहीं... यह समय शोक मार्च निकालने का नहीं... बल्कि यह समय आत्मा के समुद्र मंथन का है... यह समय अपने हाथों में इस सनातन देश की जिम्मेदारियों को लेने का है... यह समय देश की रक्षा के लिए स्वयं एक सशक्त सैनिक बनने का है... जिस दिन इस देश का हर एक नागरिक एक स्वत:स्फूर्त सैनिक बनने की ठान लेगा... इस देश की ओर आंख उठाने का सपना भी कोई नहीं देख सकेगा।यह हो सकता है कि हमारा यह विचार शायद विभिन्नताओं से भरे इस विशाल देश में शायद किसी कवि की एक कोरी कल्पना लगे परंतु यदि थोड़ी सी भी संख्या में ही लोग सक्रिय हो गए तो तस्वीर का रूख बदलते देर नहीं लगेगी क्योंकि यह बहुत ही विचारणीय कटुतम सत्य है कि जब सिर्फ 10 आतंकवादियों ने सवा करोड़ की आबादी वाले तथाकथित मुंबई स्पिरिट वाले इस महानगर बल्कि सम्पूर्ण देश को एक तरह से बंधक सा बना लिया था तो क्या इस देश की सवा अरब से भी ज्यादा जनसंख्या में से यदि कुछ भी प्रतिशत लोग जागृत हो गए तो हम समझ सकते हैं कि हम क्या कर सकते हैं।

हमें यह कायरता की विचारधारा को छोड़ना होगा कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी, ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान पैदा तो जरूर हों लेकिन हमारे घर में नहीं बल्कि पड़ोसी के घर में... आज हमें शाहरूख खान नहीं, आज हमें गांधी-नेहरू संतति की नहीं... आज हमें अमिताभ बच्चन नहीं... आज हमें मेजर उन्नीकृष्णन जैसे सिंहों की आवश्यकता है, जो अपने माता-पिता की एक मात्र संतान थे... कमांडो गजेन्द्र सिंह जैसे शेरों को पैदा करने की जरूरत है... माइकल जैक्शन जैसे लोगों की नहीं...

जय भारत।

मधुकर पाण्डेय